पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/९७

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E. द्वितीय कोशस्थान इन्द्रिय [१०३] इन्द्रिय (१-२१), परमाणु (२२), चैत्त (२३-३४), चित्तविप्रयुक्त धर्म (३५-४८), हेतु-फल (४९-९३) १. इन्द्रिय (१-२१) धातुओं में (१.४८) हमने, इन्द्रियों को परिगणित किया है । 'इन्द्रिय' शब्द का क्या अर्थ है ? 'इदि' धातु का अर्थ परमेश्वयं है (धातुपाठ, १.६४) । जिसकी परमैश्वर्य की प्रवृत्ति होती है वह इन्द्रिय कहलाता है । अतः सामान्यतः इन्द्रिय का अर्थ 'मविपति' है ।' चतुर्वयु पंचानामाविपत्यं द्वयोः किल । चतुर्गा पंचकाष्टानां संक्लेशव्यवदानयोः ॥१॥ प्रत्येक इन्द्रिय के आधिपत्य का क्या विषय है ? १. सिद्धान्त के अनुसार पाँच का आधिपत्य चार अर्यों में है; चार का दो अर्थों में पांच, आठ का संक्लेश और व्यवदान में 12 १. चक्षुरिन्द्रियादि ५ इन्द्रियों में से-५ विनानेन्द्रियों में से प्रत्येक (१)आत्मभावशोभा, (२) आत्मभाव-परिरक्षण, [१०४] (३) विज्ञान और तद्विज्ञान-संप्रयुक्त तसिकों का उत्पाद, (४) असा- घारणकारणत्व, इन विषयों में अविपति है (विभापा, १४२, १०)। चक्षु नीर श्रोत्र (१) शोभा में अधिपति हैं क्योंकि जिस शरीर में उनका अभाव होता है वह सुरूप नहीं होता (१.१९); (२) परिरक्षण में अधिपति हैं क्योंकि देखकर और 4 २ २.२ ए पर नीचे, आधिपत्य = अधिकप्रभुत्व । सेन्ट पीटर्सवर्ग डिक्शनरी में उद्धृत सिद्धान्तकौमुदी देखिए। गाउँ : सांख्य फिलासफी २५७ । सत्यसालिनी, ३०४ इत्यादि में दिए हुएं इन्द्रियों के व्याख्यान से तुलना कीजिए । 'इदि' के लिए जिस चीनी शब्द का प्रयोग हुआ है उसका अर्य है 'अधि-पति'। [चतुप्वयेषु पंचानाम् आधिपत्यम्] द्वयोः किल । [चतुर्णा पंचकाप्टानां] संश्लेशव्यवदानयोः ॥ समयप्रदीपिका को कारिका २.१ में 'किल शब्द नहीं है। यनुबन्ध इस गब्द ने सूचित करते हैं कि वह वैभाषिक मत से सहमत नहीं हैं। कारिका २.२.४ जहां वसुबन्ध सौत्रा- न्तिक मत का व्याख्यान करते हैं समयप्रदोपिका में नहीं हैं।