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पृष्ठ:अयोध्या का इतिहास.pdf/१०४

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प्रसिद्ध राजाओं के संक्षिप्त इतिहास


अध्याय ७

अड़तालीस दिन रात पृथिवी पर पानी बरसा . . . और १५० दिन तक पृथिवी जल में मग्न रही।

नाव ऊपर तैरा की

सारे जीव मर गये। नूह अकेला जीता रहा और जो उसके साथ नाव पर थे वे भी जीते रहे।

फिर ईश्वर ने हवा चलाई और पानी बन्द हुआ।

मुसलमानों में इस प्रलय की कथा ईसाइयों की कथा से मिलती-जुलती है। भेद इतनाही है कि अल्लाहताला ने नूह को संसार में इस्लाम धर्म सिखाने भेजा था। परन्तु काफ़िरों ने उनकी एक न सुनी और कठिन परिश्रम करने पर भी केवल ८० मनुष्य मुसलमान हुये। शेष उनके उपदेश के समय अपने कान बन्द कर लेते थे और कपड़ा ओढ़ लेते थे। पुस्तक पढ़ने से विदित होता है कि जिन लोगों को नूह पैग़म्बर उपदेश देते थे सब मूर्त्तिपूजक थे और नूह उनकी मूर्त्तियों की निन्दा करते तो वह लोग कहते थे कि हम अपनी मूर्त्तियों को न छोड़ेंगे और पत्थरों की पूजा में अपने सिरों को फोड़ेगें। तुम सच्चे हो तो हमें दिखाओ कि अल्लाह कैसे दंड देता है। नूह ने तब निरास हो कर अल्लाहताला से बिनती की कि तू इन काफ़िरों को ग़ारत कर। उनकी बिनती सुनकर अल्लाहताला ने कहा कि हम इस जाति को प्रलय से नष्ट कर देंगे और तुमको और तुम्हारी "उम्मत"[] को नाव में रखकर बचा लेंगे। उसी समय जिबरईल को आज्ञा दी गई कि साज का पेड़ बोया जाय। २० वर्ष में पेड़ बड़ा हो गया तब नूह ने जिबरईल के कहने से उसके तख़्ते चीरे और नाव बनायी और तख़्तों के जोड़ पर क़ीर (قیر राल) लगा दी। नाव बन जाने पर जिबरईल ने पशु पक्षी


  1. उम्मत — اُمَّت
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