सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:अयोध्या का इतिहास.pdf/१०५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
७४
अयोध्या का इतिहास

के जोड़े इकट्ठा किये और नाव में भरे। नूह, उनके तीन बेटे और बहुयें और उनकी उम्मत के लोग नाव पर सवार हुये। . . . . उसी समय ४० दिन तक पानी बरसा और सारे काफ़िर और उनके घर बार डूब गये। तब अल्लाह के हुकुम से नूह की नाव जूदी पहाड़ की चोटी पर ठहरी ……… इत्यादि।[]

हमने इस पौराणिक आख्यान को यहाँ कई प्रयोजनों से लिखा है। एक तो यह है कि प्रलय को अनेक जाति और धर्म के लोग मानते हैं जैसे :—

१—चीनवालों में फ़ोही (Fohi) का प्रलय।
२—असीरियावालों का चिसुथ्रस (Xisuthrus)।
३—मेक्सिको का प्रलय।
४—यूनानवालों का डुकेलियन (Deucalion) और अगिगीज़ (Ogyges)।

इससे जान पड़ता है कि प्रलय अवश्य हुआ। मत्स्यपुराण में जो इसी अवतार का प्रधान ग्रन्थ है मत्स्य भगवान् ने वैवस्वत मनु को दर्शन दिये थे। वैवस्वत मनु पृथिवी के पहिले राजा थे और उन्होंने अयोध्या नगर बसाया। इससे यह अनुमान किया जा सकता है कि मत्स्य भगवान् ने अयोध्या ही में मनु को दर्शन दिये। मुसलमान लोग तो यहाँ तक मानते हैं कि अयोध्या में थाने के पीछे नूह की क़बर है और उसमें नूह ही के साथ उनकी किश्ती के चार तख़्ते भी दफ़न हैं।

दूसरी विचित्र बात मत्स्यपुराण में यह देखी कि मनु-वैवस्वत वाले प्रलय के पीछे जब नई सृष्टि हुई तो मनु स्वायम्भू का जन्म हुआ यद्यपि वैवस्वत मनु सातवें मनु माने जाते हैं। मनु-वैवस्वत ने सब को बचाया था। वह कहाँ गये? हमारी समझ में मत्स्यपुराण स्वायम्भू मनु की


  1. यह अंश मजीदी प्रेस कानपुर की छपी रौज़तुल् असफ़िया के आधार पर लिखा गया है।