सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:अयोध्या का इतिहास.pdf/१०८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
७७
प्रसिद्ध राजाओं के संक्षिप्त इतिहास


भरणाञ्च प्रजानां वै मनुर्भरत उच्यते।
निरुक्त वचनाच्चैव वर्षं तद्‌भारतं स्मृतम्॥७६॥[]

"समुद्र के उत्तर और हिमाचल के दक्षिण देश का नाम भारत है वहीं भारती प्रजा रहती है। प्रजा के भरण पोषण करने के कारण मनु ही भरत कहलाता है। निरुक्त का भी यही बचन है और इसी से भारतवर्ष नाम प्रसिद्ध है।"

इसमें सब से बड़ा प्रमाण निरुक्त का है। निरुक्तकार कहता है:—

भरतः आदित्यस्तस्य भा भारती

इस विषय पर सुप्रसिद्ध इतिहास मर्मज्ञ श्रीयुत विन्हा मणि विनायक वैद्य जी ने अपने विचार "हिन्दू भारत का उत्कर्ष" नामक ग्रन्थ के परिशिष्ट में प्रकट किये हैं। हम उनसे अनेक बातों में सहमत नहीं हैं। परन्तु इस विषय में उनके विचार की पुष्टि और प्रमाणों से होती है। हम वैद्य जी के ग्रन्थ का कुछ अंश उद्धृत करते हैं:—

"पुराण परम्परा बता रही है कि हिन्दुस्तान का भारतवर्ष नाम जिस भरत के कारण पड़ा वह दुष्यन्तपुत्र भरत नहीं किन्तु उससे सहस्रों वर्ष पूर्व उत्पन्न हुआ मनु का प्रपौत्र अथवा साक्षात् मनु ही था। वायु और मत्स्यपुराणों में निरुक्त का जो हवाला दिया है वह साधारण है। . . . ऋग्वेद में जिन भरतों का बार बार उल्लेख है वे उक्त भरत के ही वंशज थे, दुष्यन्त-पुत्र के नहीं। ऋग्वेद संहिता में भरतों का नाम तीसरे और चौथे मण्डल में बार बार आया है। इन मण्डलों में सुदास त्रित्सु के सम्बन्ध में यह नाम आया है और छठे मण्डल में इनका सम्बन्ध दिवोदास राजा से बताया गया है।" (भाग २ पृष्ठ ९५)। इस उल्लेख के ऋग्वेद सूक्त हमने देखे। उनसे पहिली बात यह


  1. Vayu-Purana, edited by Rajendralal Mitra and published by the Asiatic Society of Bengal, page 347.