पृष्ठ:अयोध्या का इतिहास.pdf/११

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ही नहीं। ज्यों ज्यों समय बीतता गया, हमारी समझ में यह बात आ गई कि मुख्य हिन्दुस्थान (Hindustan Proper) हिमालय के दक्षिण विन्ध्याचल के उत्तर दिल्ली और दिल्ली के पूर्व और पटने के पश्चिम के भूखंड को कहते हैं और किसी प्रान्त को हमसे सहानुभूति न रही। हिन्दुस्थान के भाग्य का निर्णय इस हिन्दुस्थान के पश्चिम पानीपत के मैदान में हुआ। पंजाबी अपने को कितना ही वीर कह लें, आक्रमणकारियों को न रोक सके।

इस देश का प्राचीन नाम उत्तरकोशला है, जिसकी राजधानी अयोध्या थी। यों तो चन्द्रवंश का प्रादुर्भाव प्रयाग के दक्षिण प्रतिष्ठानपुर में हुआ; परन्तु जैसे मनु पृथ्वी के प्रथम राजा (महीभृतामाद्यः) कहे जाते हैं वैसे ही उत्तरकोशला की राजधानी अयोध्या भी सबसे पहिली पुरी है। इसी उत्तरकोशला में विष्णु भगवान के मुख्य अवतार राम, कृष्ण और बुद्ध अयोध्या, मथुरा और कपिलवस्तु में हुए। तीर्थराज प्रयाग, मुक्तिदायिनी विश्वनाथपुरी काशी इसी कोशला में हैं। वेदों में जिन पांचालों का नाम बार बार आया है वे इसी कोशला के रहनेवाले थे। इसी कोशला में अयोध्या के राजा भगीरथ कठिन परिश्रम से गंगा को ले आये। यहीं से निकलकर क्षत्रियों ने तिब्बत, श्याम और जापान में साम्राज्य स्थापित किये। जैन लोग २४ तीर्थंकर मानते हैं। उनमें से २२ इक्ष्वाकुवंशी थे। यों तो ५ ही तीर्थंकरों की जन्मभूमि अयोध्या में बताई जाती है, परन्तु जैनियों की धारणा यह है कि सारे तीर्थकरों को अयोध्या ही में जन्म लेना चाहिये। विशेष बातें इस ग्रन्थ के पढ़ने से विदित होंगी। ऐसे प्राचीन नगर का इतिहास जानने की किस सहृदय भारतवासी को अभिलाषा न होगी।

चार बरस हुये हमने फ़ैज़ाबाद के लोकप्रिय डिपुटी कमिश्नर श्रीमान् आर॰ सी॰ होबार्ट महोदय की आज्ञा से अयोध्या का एक छोटा सा