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पृष्ठ:अयोध्या का इतिहास.pdf/११७

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प्रसिद्ध राजाओं के संक्षिप्त इतिहास

उनकी बेटियों के लिये स्फटिक के महल बने हैं जिनके चारो ओर बारा तड़ाग हैं।

राजा एक कन्या के घर में गये और उसे गले लगाकर पूछा, "बेटी तुम्हें किसी बात का दुख तो नहीं है। मुनि तुम से अनुराग करते हैं। कभी तुम्हें अपनी जन्म भूमि की सुधि आती है;" बेटी ने कहा, "पिताजी यहां किसी बात का दुख नहीं है यों तो जन्म भूमि को कोई कैसे भूल सकता है। दुख केवल इसी बात का है कि मेरे पति मेरे ही पास रहते हैं मेरी और बहिनों के पास नहीं जाते।" राजा दूसरी कन्या के पास गये तो उसने भी यही बात कही। यह सुनकर राजा तीसरी के घर गये उसने भी यही कहा। ऐसे ही औरों के मुंह से सुनकर अत्यन्त विस्मित होकर राजा एकान्त में बैठे तपस्वी सौभिरि के पावों पर गिर पड़े और कहने लगे हमने आपकी सिद्धि का प्रभाव देखा। राजा प्रसन्न होकर राजधानी को लौट गये यहां कुछ दिनों में सौभिरि के पचास राजकन्याओं से डेढ़ सौ बेटे हुये। सन्तान देखकर मुनि जी ममताजाल में फंस गये। कभी सोचते कि मेरे बच्चे कब पाँव पाँव चलेंगे। कब सयाने होंगे? कब इनका ब्याह होगा? कभी वह भी दिन आयेगा कि हम इनके भी बच्चे देखेंगे, और ज्यों ज्यों उनके मनोरथ पूरे होते जाते थे, त्यों त्यों नये नये मनोरथ उठ खड़े होते थे। कुछ दिन पीछे मुनि को ज्ञान हुआ और उनकी आँखें खुल गई। उस समय उन्होंने जो बातें कहीं उससे स्पष्ट है कि माया मोह में फंसे मनुष्य का चित्त ईश्वर में नहीं लग सकता। और सब छोड़ छाड़ कर भगवद् भजन करने लगे।

मान्धाता के तीन बेटे थे, पुरुकुत्स, अम्बरीष और मुचुकुन्द। मुचुकुन्द ने विन्ध्य और ऋक्ष पर्वतों के बीच में नर्मदा के किनारे माहिष्मती नगरी बसाई। उसकी एक राजधानी ऋक्ष पर्वत के नीचे पुरिका भी थी।