(२२) पुरुकुत्स—इस राजा के समय में मौनेय नाम के गन्धर्वों ने नर्मदा के तट पर नागकुल को परास्त करके उनका धन लूट लिया था। नागों ने पुरुकुत्स से सहायता मांगी और पुरुकुत्स ने गन्धवों को नष्ट कर दिया। इसपर नागराज ने प्रसन्न हो कर अपनी बेटी नर्मदा उस को ब्याह दी।
पुरुकुत्स की बेटी पुरुकुत्सा कान्यकुब्ज के राजा कुश को ब्याही थी। और राजा गाधि की माँ थी। (उपसंहार)
(२५) अनरण्य—रावण ने दिग्विजय करके इसका वध किया था।[१] जिस स्थान पर लड़ाई हुई थी वह अयोध्या से १४ मील पश्चिम रौनाही के[२] नाम से प्रसिद्ध है। परन्तु इससे यह न समझना चाहिये कि रावण ने कभी अयोध्या पर अधिकार थोड़े दिनों के लिये भी जमाया हो। यह स्मरण रखना चाहिये कि कई पीढ़ी पीछे श्रीरामचन्द्रजी ने लंका को जीत कर इसका बदला ले लिया।
(३०) त्रय्यारुण—इसके राज्य में एक दुखदाई घटना हुई। इसका बेटा सत्यव्रत जवानी की उमंग में विवाह के समय एक ब्राह्मणकन्या को हर ले गया। अपराध ऐसा घोर न था परन्तु उसके पिता ने उसे चांडाल
- ↑ वा॰ रा॰ ७० १९ ऐतिहासिक दृष्टि से यह बात असंभव है कि एकही रावण अनरण्य का मारनेवाला भी हो और चालीस पीढ़ी पीछे श्रीरामचन्द्र के हाथ से मारा जाय। मिस्टर पार्जिटर ने रायल एशियाटिक सोसाईटी के १९१४ के जर्नल पृष्ठ २८५ में यह लिखा है कि रावण तामिल शब्द इरैवण का संस्कृत रूप है जिसका अर्थ है राजा, स्वामी, ईश्वर। मड़याड़म में राजा को इड़ान कहकर संबोधन करते हैं। कन्नाडी में ऐड़े स्वामी का बोधक है। इससे प्रगट है कि इरैवण के संस्कृत रूप रावण का अर्थ केवल राजा है और लंका के राजा इसी नाम से संस्कृत ग्रन्थों में लिखे जाते थे।
- ↑ जैन शिक्षा लेखों में रौनाही रत्नपुर कहलाता है। संभव है कि रौनाही इसी का बिगड़ा रूप हो। रत्नपुर प्राकृत रअणउर—रौनाही।