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इतिहास अंग्रेजी में लिखा। यह प्रयाग विश्वविद्यालय के वाइस चैन्सलर श्रीमान् महामहोपाध्याय डाक्टर गंगानाथ झा, एम॰ ए॰, डी॰ लिट॰, एल-एल॰ डी॰ की अनुमति से Allahabad University Studies Vol. IV में छपा। सर जार्ज ग्रियर्सन, सर रिचर्ड बर्न आदि अंग्रेजी के बड़े बड़े विद्वानों ने इसकी मुक्तकंठ से प्रशंसा की। उस छोटी सी पुस्तक का अनेक मित्रों के आग्रह से हिन्दी में अनुवाद किया गया। परन्तु वह ग्रन्थ छोटा था। इससे जब हिन्दुस्तानी एकेडेमी की ओर से इसके प्रकाशन का प्रस्ताव किया गया तो श्रीमान सर शाह मुहम्मद सुलेमान महोदय की अनुमति यह हुई कि ग्रन्थ बढ़ाकर २५० पृष्ठ का कर दिया जाय।

अयोध्या के इतिहास की सामग्री प्रचुर है, परन्तु बड़े खेद की बात है कि यद्यपि महात्मा बुद्धजी यहाँ १६ वर्ष तक रहे और यहीं उनके सारे सिद्धान्त परिणत हुये तो भी उनके यहाँ निवास का पूरा विवरण नहीं मिल सका। कदाचित् लका में सिंहली भाषा में कुछ सामग्री हो। वेद, पुराण, रामायण, महाभारत, गजे़टियर आदि के अतिरिक्त रायल एशियाटिक सोसायटी के जर्नल में प्रसिद्ध विद्वान् पार्जिटर के लेखों से इस ग्रन्थ के सम्पादन में विशेषरूप से सहायता मिली है। अयोध्या में जैनधर्म का वर्णन कलकत्ते के सुप्रसिद्ध विद्वान बाबू पूरनचन्द नाहार और लखनऊ के ऐडवोकेट पं॰ अजित प्रसाद जी के भेजे लेखों के आधार पर है। गोंडा जिले के तीर्थों का वर्णन हमारे स्वर्गवासी मित्र बाबू रामरतन लाल का संकलित किया हुआ है। अयोध्या के शाकद्वीपी राजाओं के इतिहास की सामग्री स्वर्गवासी महाराजा प्रतापनारायण सिंह अयोध्यानरेश से प्राप्त हुई थी। बड़े शोक की बात है कि महाराजा साहब ऐसे गुणज्ञ रईस अब संसार में नहीं हैं, नहीं तो इस ग्रन्थ का रूप भी कुछ और होता। अस्तु, जो कुछ मिला वह पाठकों की भेंट