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पृष्ठ:अयोध्या का इतिहास.pdf/१२१

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प्रसिद्ध राजाओं के संक्षिप्त इतिहास

दे दिया। यज्ञ में देवता भी न आये; इसपर विश्वामित्र ने त्रिशंकु को अपने तपोबल से स्वर्ग की ओर उठा दिया। इन्द्र ने उससे कहा कि तुम स्वर्ग में नहीं रह सकते और उसे गिरा दिया।तब विश्वामित्र ने कहा कि तुम ठहरे रहो। तब से दक्षिण की ओर आकाश में सिर नीचे वह लटका हुआ है। उसी की राल से कर्मनासा नदी निकली है। [] इसका यही ऐतिहासिक अर्थ हो सकता है कि विश्वामित्र ने दक्षिण आकाश में एक नक्षत्र का नाम त्रिशंकु रखकर उसको अमर कर दिया। त्रिशंकु की रानी केकय-वंश की राजकुमारी थी।

(३२) हरिश्चन्द्र—श्रीरामचन्द्र से पहिले अयोध्या के जितने राजा हुये उनमें हरिश्चन्द्र सब से प्रसिद्ध हैं। उनकी सत्यप्रियता ऐसी थी की उसके लिये अपनी प्यारी से प्यारी वस्तु त्याग देने में उन्हें संकोच न हुआ इसी विषय पर अनेक हिन्दी नाटक बन गये जो अत्यन्त लोक प्रिय हैं। पौराणिक कथा का आधार वैदिक उपाख्यान पर है और वह प्रचलित कथा से भिन्न है। इससे हम फिर रायल एशियाटिक सोसाइटी के १९१७ के जर्नल से मिस्टर पार्जिटर के विचार उद्धृत करते हैं। इसमें उन्होंने कथा की ऐतिहासिक मात्रा पर अपना मत प्रकट किया है।

'राजा हरिश्चन्द्र के कोई पुत्र न था। उन्होंने नारद के कहने से वरुणदेव से प्रार्थना की कि मेरे पुत्र हो तो तुम्हें बलि चढ़ा हूँ। वरुण ने उनका मनोरथ पूरा कर दिया और रोहित का जन्म हो गया। वरुण तुरन्त ही अपनी भेंट मांगी। देवता से लड़का इस लिये मांगना कि जनमते ही लड़का वलिदान कर दिया जाय एक अनोखी बात है परन्तु ऐसे धार्मिक विषय में यह बात असंभव है कि राजा ने अपने कुलगुरु वसिष्ठ से मंत्र न लिया हो । वसिष्ठ इस प्रतिज्ञा को जानते तो थे ही परन्तु लड़का पैदा हो गया और कुछ बोल नहीं । राजा, वरुण को श्राज्ञा टालता


  1. * वसिष्ठ और विश्वामित्र के भाड़े का एक स्थान इसी के पास है। इसका वर्णन उपसंहार (घ) में है।