पृष्ठ:अयोध्या का इतिहास.pdf/१२३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
९३
प्रसिद्ध राजाओं के संक्षिप्त इतिहास

रहा है। रोहित ने सौ गायें देकर दूसरे लड़के शुनःशेप को मोल ले लिया और उसको लेकर अयोध्या पहुंचा। राजा हरिश्चन्द्र ने तब यह प्रस्ताव किया कि रोहित के बदले शुनःशेप बलिदान कर दिया जाय और वरुण ने मान लिया। इसमें संदेह नहीं कि रोहित को किसी उपाय से अपने प्राण बचाने की चिन्ता लगी रही और उसने इस आपद्ग्रस्त ब्राह्मणकुल को देखा तो उसे डूबते का सहारा मिल गया । उसे तुरन्त यह सूझा कि अपने बदले मरने को एक लड़का मोल ले ले और उन लोगों ने अपनी विपत्ति के मारे उसकी बात मान भी ली। इससे उस कुटुम्ब का एक मनुष्य मरता था नहीं तो सब भूखों मर जाते । अब रोहित को अपने पिता के पास रहने में कोई बाधा न थी यद्यपि इन्द्र के बहकाने का कारण जैसा पहिले था उसमें कुछ कमी न हुई थी। वरुणदेव ने रोहित के बदले शुनःशेप की बलि स्वीकार कर ली क्योंकि ब्राह्मण की बलि क्षत्रिय की बलि से श्रेष्ठ ही थी। अब वसिष्ठ का बलिदान से कोई प्रयोजन न रह गया। शुनःशेप के आ जाने से बात ही और हो गई। नरबलि से अब कोई प्रयोजन सिद्ध न होता था। परन्तु इस बात को कहता कौन? कहने से भांडा फूट जाता। अब यही हो सकता था कि यज्ञ प्रारम्भ कर दिया जाय, सब रीतियाँ की जॉय और किसी उपाय से जना दिया जाय कि वरुणदेव बिना बलिदान ही संतुष्ट होगये और शुनःशेप छोड़ दिया जाय। चाल तो चली नहीं इससे वसिष्ठ ने यही उचित समझा कि यज्ञ में कोई काम न करें। यह भी उचित था कि राजा भी प्रसन्न कर लिया जाय प्रतिकूल इतने दिनों तक यह चरित्र होता रहा। शुनःशेप ने पुष्कर जाकर अपने मामा विश्वामित्र[१] से अपने बचाने को कहा और विश्वामित्र उसके साथ अयोध्या चले गये, क्योंकि विश्वामित्र को लोगों ने ब्राह्मण स्वीकार


  1. रामायण में लिखा है कि विश्वामित्र पुष्कर ही में मेनका के साथ बारह बरस रहे थे।