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पृष्ठ:अयोध्या का इतिहास.pdf/१२७

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प्रसिद्ध राजाओं के संक्षिप्त इतिहास

मेरे प्रभु नारायण हैं और उन्हीं को मैं नमस्कार करता हूँ।" इससे विष्णु प्रसन्न हुए और अपने रूप से उनके सामने प्रकट हुए।

महाराज अम्बरीष की अत्यन्त सुन्दरी एक कन्या थी, जिसका नाम सुन्दरी थी। यह कन्या विवाह के योग्य होगई थी। एक समय देवर्षि नारद और पर्वत किसी कार्यवश अम्बरीष के पास आये थे। उन दोनों ने अम्बरीष की कन्या से विवाह करने की अपनी अपनी अभिलाषा प्रकट की। अम्बरीष बोले, श्राप दोनों महामुनि हैं, कन्या को अर्पण करना हमारे बस की बात नहीं है। अतएव आप लोग और किसी दिन आवें, कन्या जिसके वरमाला डाल दे, वही उससे व्याह करले। नारद ने अम्बरीष का विष्णुभक्त जानकर और विष्णु के समीप जाकर सब बातें कहीं, और पर्वत का मुख वानर के समान बनाने के लिये भी कहा। विष्णु ने नारद की प्रार्थना स्वीकृत की। परन्तु पर्वत से इस विषय में कुछ कहने के लिये मना किया। थोड़ी देर के बाद पर्वत भी विष्णु भगवान के समीप पहुंचे और उन्होंने भी नारद के समान ही विनती की। विष्णु ने इनकी भी बातें मानली; और कह दिया कि इस विषय में नारद से कुछ न कहना । समय आ पहुंचा, दोनों मुनि विवाह की इच्छा से अम्बरीष के यहाँ पहुंचे। अम्बरीष ने अपनी कन्या से कहा कि तुम जाकर इनमें से पति वरण कर लो। कन्या अम्बरीष की आज्ञा से वरमाला लेकर उनके सामने गयी। कन्या स्वयं राधा थीं। उन्होंने कृष्ण से व्याह करने के लिये तपस्या करके अम्बरीष के यहाँ जन्म ग्रहण किया था। श्रीमती मुनियों के पास जाकर अत्यन्त डर गयीं। अम्बरीष के कारण पूछने पर श्रीमती बोली “यहाँ न तो नारद हैं और न पर्वत ही हैं, दो आदमी देखे तो जाते हैं परन्तु उनका मुँह वानरों का सा है।" यह सुन कर राजा को अत्यन्त विस्मय हुआ। उन दोनों के बीच एक तीसरा सुन्दर पुरुष बैठा था। श्रीमती ने उसी को वरमाला पहना दी। वरमाला पहनाने पर श्रीमती अदृश्य हो

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