उसमें लिखा है कि राजा ने एक बाघ मारा था जिसने राजा से कहा था कि मैं तुम से बदला लूंगा और राजा के यज्ञ की समाप्ति पर रसोइयाँ बनाकर उसने वसिष्ठ के आगे नरमांस परोस दिया। इस पर वसिष्ठ ने राजा को शाप दिया कि तुम राक्षस हो जाओ। राजा का कुछ दोष न था इसलिये उसने भी वसिष्ठ को शाप देना चाहा परन्तु उसकी रानी दमयन्ती ने उसे मना किया और कहा कि कुलाचार्य को शाप देना अनुचित है और राजा मान गया। पीछे राजा नं ऋतुकाल में दयिता-संगत एक ब्राह्मण को देखा और उसको पकड़ लिया। ब्राह्मणी ने बिनती करके उसको छुड़ाना चाहा परन्तु राजा ने उसे मार डाला।
५४ अश्मक—इसने यौदन्य नामक नगर बसाया था।
५५ मूलक—विष्णु, पुराण में लिखा है कि जब परशुराम ने पृथ्वी को निःक्षत्रिया करना चाहा तो स्त्रियों ने इसकी रक्षा की । इसलिये इसका "नारी-कवच" नाम पड़ा । यह समझ में नहीं आता कि पृथ्वी निःक्षत्रिया कब और कैसे हुई । राम भार्गव और अर्जुन हैह्य में लड़ाई अवश्य हुई थी परन्तु मूलक से नौ पीढ़ो नीचे इक्ष्वाकु वंशी श्रीरामचन्द्र जी ने राम भार्गव का मान मन्द किया था।
५९ दिलीप द्वितीय खट्वाँग—यह भगवद्भक्त था। इसने देवासुर संग्राम में असुरों का जीता और जब देखा कि इसकी आयु एक मुहूर्त ही और बची है तो फिर अपने देश को लौट आया और विष्णु भगवान् का भ्यान करके उन्हीं में लवलीन हो गया।
हरिवंश में लिखा है कि अयोध्या के इक्ष्वाकु वंशी राजा हर्यश्व ने मधुदैत्य की बंटी मधुमती के साथ अपना विवाह कर लिया। इस पर उसके बड़े भाई ने उस निकाल दिया और वह अपने ससुराल चला गया। यहाँ उसके ससुर ने अपने बेटे लवण के लिये मधुवन छोड़ कर उसे अपना सारा राज दे दिया। तब हर्यश्व ने गिरिवर में जिसे आजकल गोवर्द्धन कहते हैं, एक महल बनवाया और नर्त्त राज्य स्थापित करके