सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:अयोध्या का इतिहास.pdf/१३४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१०४
अयोध्या का इतिहास


४ चन्द्रकेतु को चन्द्रचक्र—हिमालय की तरेटी में।

५ (भरत के बेटे) तक्ष—को तक्षशिला जो संभवतः केकय देश में था जो नाना से मिला था—तक्षशिला के खंडहर रावलपिंडी जिले में है।

६ पुष्कल—को पुष्करावती, यह भी गान्धार देश (केकयदेश) में था।

७ शत्रुघ्र के पुत्र शूरसेन—(बहुश्रुति) को मथुरा।

८ सुवाहु—को विदिशा (आज कल का मिलसा)।

अयोध्या उजाड़ दी गई थी, कदाचित् भाइयों में तकरार के डर से।

६५ कुश—परन्तु भाइयों ने सहमत होकर कुश को सम्राट माना और उन्होंने अयोध्या को फिर से बसाया।

८२ हिरण्यनाभ-यह योग—दर्शन के आचार्य महायोगीश्वर जैमिनी का शिष्य था और इसी से याज्ञवल्क्य ने योग सीखा।[] यही हिरण्यनाभ सामवेद का भी प्राचार्य था।

यहाँ उसको कोशल्य लिखा है जिससे स्पष्ट है कि वह कोशला का राजा था।

९४ वृहद्वल—इसको महाभारत में अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु ने मार डाला।[]

महाभारत के पीछे कोशला के राजाओं की नामावली में चार नाम देख कर कुछ आश्चर्य होता है।


  1. *विष्णु पुराण अंश ४ अध्याय ४।
  2. +महाभारत की लड़ाई में कोशलराज के कुछ लोग पाण्डवों की ओर से बड़े कुछ कौरवों की ओर से। इससे यह अनुमान किया जाता है कि उस समय कोशवराज के दो खंड हो गये थे। एक पूर्वी दूसरा पश्चिमी । पूर्वी कोशल के राजा जरासन्ध के डर से भाग कर दक्षिण को चले गये और पश्चिमी कोशल का राजा वृहदूवल था।