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अयोध्या का इतिहास

किया जिसे जनता ने ग्रहण कर लिया, मणिपर्वत के विषय में पौराणिक जनश्रुति का समूलोच्छेदन करता है ।

इतिहास में नन्दवर्द्धन (नन्दिवर्द्धन) दो हैं, पहिला प्रद्योत कुल का पाँचवाँ राजा जो ई० पू० ७८२ में मरा और दूसरा शिशुनाक वंश का नयाँ राजा जो ई० पू० ४६५ में मरा। हमारे मत में मणि-पर्वत का बनाने वाला शिशुनाक वंशी नन्दिवर्द्धन है। अजातु-शत्रु ने भगवान बुद्धदेव से दीक्षा ली थी इससे उसके उत्तराधिकारी भी बौद्धधर्मावलम्बी रहे होंगे और इनमें एक में न केवल सनातन धर्म को दबाया वरन् एक बड़ा स्तूप भी बनवाया जो अबतक विद्यमान है।

नन्द—नन्दिवर्द्धन के उत्तराधिकारी को महापद्मनन्द ने मार डालाऔर ई० पू० ४२२ से नन्दवंश चला। कोशल देश भी इन्हीं के अधिकार में चला गया। महापद्मनन्द ने ८८ वर्ष राज किया। जव पिता का शासनकाल बाहुत बड़ा होता है तो बंटे बहुत दिन तक राज नहीं कर सकते। महापद्मनन्द के आठ बेटों ने केवल १२ वर्ष राज किया। आठवें बेटे को ई० पू० ३२२ में चाणक्य ने मार डाला और चन्द्रगुप्त मौर्य को सिंहासन पर बैठा दिया।

मौर्य—पहिले तीन मौर्य सारे भारतवर्ष के साम्राट् थे और आज-कल का अफगानिस्तान भी उन्हीं के शासन में था। अशोक के पीछे चौथा राजा शालिसूक था। गर्गसंहिता में लिखा है कि इसके शासन-काल में दुष्ट यवन साकेत, पाञ्चाल और मथुरा जीत कर पट्टन तक पहुँचे थे। यह आक्रमण केवल लूट-पाट के अभिप्राय से था और देश पर आँधी की भाँति उड़ गया ।

मौर्य वंश ने ई० पू० ३२२ से ई० पू० १८५ तक १३७ वर्ष राज किया। उन्हीं की सेना का सेनापति पुष्पमित्र अपने स्वामी को मार कर आप राजा बन बैठा।

शुङ्ग—पुष्पमित्र शुङ्गवंशी था और उससे शुङ्ग गज की नेव पड़ी।