वह सनातन धर्म का कट्टर पक्षपाती था और इसी से उसने बौद्धों को सताया। प्रसिद्ध है कि उसने पूर्व मगध से पश्चिम के जालंधर (पञ्जाब) तक मठ जला दिये और बौद्ध भिक्षु मार डाले। उसने कई अश्वमेध यज्ञ किये जिसमें एक का उल्लेख मालविकाग्निमित्र नाटक में है। इस नाटक का नायक पुष्यमित्र का बेटा अग्निमित्र है जो अपने पिता के जीवन काल में विदिशा का राजा था। प्रसिद्ध भाष्यकार, पातञ्जलि इसी के एक अश्वमेध यज्ञ में पुरोहित था।[१]
अयोध्या का शासन सूदूर पाटलिपुत्र से होता था तो भी यह उस समय बड़ा समृद्धि नगर था और इसी कारण ई॰ पू॰ १५४ में यूनानी राजा मिनान्दर ने इस पर आक्रमण किया। कठोर युद्ध हुआ और यूनानी राजा को अपने देश लौट जाना पड़ा। इसका भी उल्लेख पातञ्जलि ने किया है।[२]
पुष्यमित्र के पीछे अग्निमित्र ने आठ वर्ष राज किया और उसके पीछे पाठ और राजा हुये जिन्होंने सब मिला कर ५८ वर्ष पृथ्वी भोगी।
थोड़े दिन हुये अयोध्या में एक शिला लेख श्रीमती महारानी साहिबा के प्रैवेट सेक्रेट्री और भाषा के सुप्रसिद्ध कवि बाबू जगन्नाथदास रत्नाकर को मिला था।[३] उसमें जो लिखा है उसका अनुवाद यह है
दो दो अश्वमेध करनेवाले सेनापति पुष्यमित्र के छटे।
(?) कोशलाधिप धन (देव) ने अपने पिता फल्गुदेव के लिये यह महल बनवाया।
धनदेव का नाम पाटलिपुत्र के दस शुङ्गवंशी राजाओं में नहीं है। कोशलाधिप उपाधि से विदित होता है कि धन (देव) केवल कोशल का राजा था और उसकी राजधानी अयोध्या थी न कि श्रावस्ती।