पृष्ठ:अयोध्या का इतिहास.pdf/१४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१११
अयोध्या और जैन-धर्म

ऋषभदेव जी के निर्वाण का समय जैन-प्रन्थों के अनुसार आज से ४१३४५२, ६३०, ३०८, २०३, १७७७४९५१२, १९९९९९९९९९९९९९९९९९९९९९९९१९९९९९९६०४७३ (७६ अंक) वर्ष पर्व माना गया है । पंचागों में सृष्टि की आदि से सं० १९८७ के आरम्भ तक १९५५८८५०२८ वर्ष बीते हैं। इन दोनों में आकाश पाताल का अन्तर है। इससे प्रकट है कि ऋषभदेव जी का जन्म किसी पहिले के कल्प में हुआ था ।

२४ तीर्थंकरों के नाम निम्नलिखित हैं:-

आदिनाथ-इन्हें ऋषभदेव भी कहते हैं राजा नाभि और रानी मेरु देवी के पुत्र, इक्ष्वाकु-वंशी।

अजितनाथ-राजा जिनशत्रु और रानी विजया के पुत्र इक्ष्वाकु-वंशी।

सम्भवनाथ-राजा जितारि और रानी सेना के पुत्र, इक्ष्वाकु-वंशी।

अभिनन्दन नाथ-राजा सम्बर और रानी सिद्धार्थी के पुत्र, इक्ष्वाकु-वंशी।

सुमतिनाथ–राजा मेद्य और रानी मंगला के पुत्र, इक्ष्वाकु-वंशी।

पद्मप्रभ-राजा श्रीधर और रानी सुषीमा के पुत्र, इक्ष्वाकु-वंशी।

सुपार्श्वनाथ–राजा प्रतिष्ठ और रानी पृथ्वी के पुत्र, इक्ष्वाकु-वंशी।

चन्द्रप्रभ-राजा महासेन और रानी लक्ष्मणा के पुत्र, इक्ष्वाकु-वंशी।