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अयोध्या और जैन-धर्म


२२ नेमिनाथ—राजा समुद्रविजय और रानी शिवा के पुत्र, इक्ष्वाकु-वंशी।

२३ पार्श्वनाथ—राजा अश्वसेन और रानी वामादेवी के पुत्र, इक्ष्वाकु-वंशी।

२४ महावीर या वर्द्धमान—राजा सिद्धार्थ और रानी तृशला के पुत्र, इक्ष्वाकु-वंशी।

इनमें से पाँच तीर्थंकरों की जन्म-भूमि अयोध्या मानी जाती है। और उन्हीं के नाम के पांच मन्दिर अब तक अयोध्या में विद्यमान हैं।

१ आदिनाथ का मन्दिर[१]—यह मन्दिर स्वर्गद्वार के पास मुराई टोले में एक ऊँचे टीले पर है जो शाहजूरन के टीले के नाम से प्रसिद्ध है।

२ अजितनाथ का मन्दिर—यह मन्दिर इटौआ (सप्तसागर) के पश्चिम में है। इसमें एक मूर्ति और शिलालेख है। यह मन्दिर सं० १७८१ में नवाब शुजाउद्दौला के खजानची केसरीसिंह ने नवाब की आज्ञा से बनवाया था।

३ अभिनन्दननाथ का मन्दिर—सराय के पास है। यह भी उसी समय का बना है।

४ सुमन्तनाथ का मन्दिर—रामकोट के भीतर है। इसमें अवध गजेटियर के अनुसार पार्श्वनाथ की दो और नेमिनाथ की तीन मूर्तियाँ हैं।

५ अनन्तनाथ का मन्दिर—यह मन्दिर गोलाघाट नाले के पास एक ऊँचे टीले पर है और इसका दृश्य बढ़ा मनोहर है।

इन मन्दिरों में तीर्थंकरों के चरण-चिह्न बने हैं और इनके दर्शन को


  1. इस मन्दिर के नष्ट होने का इतिहास अध्याय १२ में है।

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