अध्याय १२ में लिखा जायगा कि राजा सुहेलदेव ने सैयद सालार मसऊद ग़ाज़ी को परास्त किया था। जनश्रुति यह है कि सुहेल देव श्रावस्ती का राजा था। सुहेलदेव के विनाश की विचित्र कथा अवध गज़ेटियर[१] ने लिखी है उसका सारांश यह है:—
"सुहेलदेव के कुल में सूर्यास्त हो जाने पर कोई भोजन नहीं करता था। एक दिन आखेट से बड़ी देर में लौटा। सूर्य अस्त हो रहा था। सुहेलदेव की भ्रातृबधू परम सुन्दरी थी। सुहेलदेव ने उसे कोठे पर भेज दिया कि सूर्य देव उसकी शोभा पर मोहित हो कर ठहर जायें। सूर्यदेव स्त्री की शोभा पर मुग्ध हो गये और स्तम्भित रह गये। राजा ने भोजन कर लिया। हमारे देश में छोटे भाई की स्त्री को देखना महापाप है। राजा को इस घटना पर बड़ा आश्चर्य हुआ और कौतुक देखने को वह भी कोठे पर चढ़ गया। बधू को देखते ही राजा के मन में पाप समा गया परन्तु स्त्री सती थी उसने न माना। राजा ने उसे बन्दीघर में डाल दिया। स्त्री राजकुमारी थी। उसके पिता राजा ने श्रावस्ती पर चढ़ाई कर दी और सुरङ्ग लगा कर अपनी बेटी को निकाल ले गया। उसके जाते ही राजप्रसाद भी गिर पड़ा और सुहेलदेव उसी से दब कर मर गया।" उसके कोई उत्तराधिकारी न था और बिना राजा के राजधानी भी उजड़ गयी।
इस कथा से हमको इतना ही प्रयोजन है कि जैन ही सूर्यास्त होने पर भोजन नहीं करते। इससे यह अनुमान किया जा सकता है कि श्रावस्ती का अन्तिम राजा जैन था।
- ↑ Oudh Gazetteer, Vol. I, page 607.