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नवाँ अध्याय
अयोध्या और बौद्धमत

"अवध के एक दूसरे महा पुरुष का भी अयोध्या से घनिष्ठ सम्बन्ध है और संसार के इतिहास पर विशेष रूप से अंकित होने से किसी की तुलना हो तो यह पुरुष श्रीराम से भी बड़ा है। शाक्य बुद्ध कपिलवस्तु के राजकुमार थे जो आजकल के गोरखपूर के पास एक नगर था। और उनका कुल कोशल के सूर्यवंश की एक शाखा थी। अयोध्या में उन्होंने अपने धर्म के सिद्धान्त बनाये और अयोध्या ही में बरसात के दिनों में रहा करते थे।"[१]

"किसी धर्म की जाँच उच्चतम धर्मनीति को शिक्षा से अथवा अंतःकरण के अत्यन्त शुद्ध उद्गार से की जाय तो इस बात के मानने में संदेह हो जायगा कि अबतक किसी मनुष्य के हृदय में इससे उच्चतम विचार उत्पन्न हुये हैं जैसे कि पीछे से एक बौद्ध महात्मा के थे; "हम अपनी व्यक्ति के लिये निर्वाण पाने का न प्रयत्न करेंगे न उसे ग्रहण करेंगे और न अकेले उस शान्ति को प्राप्त करेंगे वरन् हम सर्वदा और सर्वत्र सारे संसार के प्रत्येक जीव के शान्ति पाने का उद्योग करेंगे। जब तक सबका उद्धार न हो जायगा हम इस पाप और दुःख भरे संसार को न छोड़ेंगे और यहीं रहेंगे।"?

बौद्ध ग्रंथों में अयोध्या को साकेत और विशाखा कहते हैं। दिव्याव दान में साकेत की व्याख्या यों की गयी हैं।

"स्वयमागतं स्वयमागतं साकेत साकेतमिति संज्ञा संवृत्ता"।

  1. Garden of India, pp. 64, 65.