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अयोध्या और बौद्धमत

सर्ग १६ में साकेत [१] लिखता है, और यह कौन कहेगा कि श्री रघुनाथ जी के विवाह के समय का नगर उनके बनवास से लौटते समय से भिन्न था। बुद्धदेव के समय में दोनों नगर विद्यमान थे। सम्भव है कि दोनों पास-पास हों जैसे इंगलिस्तान में लण्डन और वेस्टमिंस्टर हैं। हम यह भी अनुमान करते हैं कि बुद्धदेव के निवास स्थान के पास-पास जो बस्ती बसी वह साकेत कहलायी और पुराना नगर ब्राह्मण धर्मानुसारी बना रहा। यही बात विशाखा जी के मठ के पास की बस्ती के विषय में कही जा सकती है।

चौद्धग्रन्थों से यह भी विदित है कि बुद्ध भगवान् ने अपने सूत्र अञ्जन बाग़ में सुनाये थे और यह बारा अयोध्या ही में था। सूर्यवंश के इतिहास में यह लिखा जा चुका है कि कोशलराज को राजधानी अयोध्या से उठ कर श्रावस्ती को चली गई थी। बौद्ध ग्रन्थों में श्रावस्ती के राजा कोशल कहलाते थे। इसमें कोई विचित्रता नहीं। महाभारत के पीछे जो सूर्यवंशी राजा हुये उसमें हिरण्यनार्भ को विष्णुपुराण में कौशल्य लिखा है। उनका राज उत्तर की पहाड़ी से लेकर दक्षिण गङ्गा तट तक और पूर्व गंडक नदी तक फैला हुआ था और बनारस भी इसी के अन्तर्गत था। सच तो यों है, कि कोशलराज और मगधराज दोनों बनारस के लिये सदा लड़ा करते थे। बुद्धदेव से पहिले कोशल राजा कंक, देवसेन और कंस ने कई बार बनारस पर आक्रमण किया। अन्त को कंस ने उसे जीत लिया और इसी से वाराणसीविजेता उसका एक विरुद् है। ई० पू० सातवीं शताब्दी में शाक्यों ने भी कोशल की आधीनता स्वीकार कर ली थी।

बौद्धमत के प्रचार से पहिले कोशलराज के अन्तर्गत आजकल का सारा संयुक्त प्रान्त हो नहीं वरन् इससे कुछ अधिक था।" इस बड़े राज की समृद्धि से व्यापारी सुरक्षित हो कर इसकी एक ओर से दूसरी


  1. साकेतनााािलिभिः प्रणेमुः।