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अयोध्या और बौद्धमत

भोजन ले जायगी ता उसको प्राणदंड दिया जायगा। तब रानी ने एक चाल चली। अपने शरीर पर वह खाने की चीजों का एक लेप लगा कर और अपने प्रोले कड़ों में पानी भर कर वहाँ जाने लगी। और इस तरह राजा को उसने जीवित रक्खा। यह चाल भी खुल गई और उसको फिर राजा के पास जाने की आज्ञा न रही। तब बुद्धदेव गिद्ध टीले पर जाकर राजा को दूर से देखने लगे और उनको देखकर राजा कुछ दिनों तक जीवित रहे। अजातशत्रु को जब यह बात मालूम हुई तब उसने खिड़की चुनवा दी और पिता के तलवों काे दगवा दिया।

इसके पीछे अजातशत्रु गद्दी पर बैठा । इस पाप के प्रसेनजित से बिगाड़ हो गया। लड़ाई में विजय कभी एक ओर होती थी कभी दूसरी ओर। कहा जाता है कि एक बार अजातशत्रु पकड़ा गया और हथकड़ी बेड़ी पहना कर शत्रु की राजधानी में भेज दिया गया! अन्त में संधि हो गई और कोशल-राजघराने की एक लड़की का विवाह मगध के राजा से हो गया।

एक बार बुद्ध जी जब राजगृह गये तब अजातशत्रु ने अपने पिता के मरने का पश्चात्ताप किया और उनका चेला हो गया। बिम्बिसार की भांति प्रसेनजित की मृत्यु भी शोचनीय रही। प्रसेनजित बुड्ढा हो गया था और कोशलराज पाने के लिये विरूधक की उत्कंठा बढ़ती जाती थी। विरूधक एक दिन शिकार खेलता कपिल-वस्तु के निकट शाक्यों के एक बाग में घुस गया। इससे शाक्य बहुत बिगड़े और उसके बध का प्रयत्न करने लगे। परन्तु वह निकल भागा और शाक्यों से बदला लेने को बहुत से सिपाही लेकर उसी बाग में फिर घुस गया। शाक्यों को उनके बड़े बूढ़ों ने बहुत समझाया परन्तु उन्होंने न माना और विरूधक को मारने पर उतारू हो गये। जब विरुधक ने सुना कि कपिल-वस्तु के शाक्य उसके मारने को आ रहे हैं तो उसने अपने एक सिपाही से कहा, "हम सेना समेत छिपे जाते हैं