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अयोध्या का इतिहास

तुमसे शाक्य लोग कुछ पूछे तो कहना कि चले गये।" जब शाक्य लोग बाग में पहुंचे और विरुधक को न पाया तो उस सिपाही से बोले "यह लौंडी-बच्चा कहां गया?" सिपाही ने कहा "भाग गये।"

कुछ शाक्य कहने लगे "हम उसे पकड़ पाते तो उसके दोनों हाथ काट डालते।" किसी ने कहा "हम उसके पाँव काट डालते।" कोई बोला "हम उसे जीता न छोड़ते, अब वह भाग गया तो क्या करें।" इस पर उन्होंने कहा "यह बाग अशुद्ध हो गया, इसको शुद्ध करना चाहिये। जहाँ-जहाँ उस नीच के पाँव पड़े हैं वहाँ मिट्टी डाल दो। जिस दीवार को उसने छुआ है उसे फिर से अस्तर करके नई कर दो। बाग भर में दूध और पानी छिड़क दो, सुगन्धित जल डाल दो, सुगन्ध फैला दो और अच्छे से अच्छे फूल बिछा दो।"

विरूधक के सेवकों ने शाक्यों की सारी बातें उस से कहीं। इस पर विरूधक आग बगूला हो गया और बोल उठा, "पिता के मरने पर हम राजा होंगे तो हमारा पहिला काम यह होगा कि हम शाक्यों को मार डालेंगे। तुम सब हमारे इस संकल्प में सहायता करने की प्रतिज्ञा करो।"

इसके पीछे वह अपने पिता के विरुद्ध षड्यन्त्र रचने लगा। उसने प्रसेनजित से पाँच सौ सभासदों को मिला लिया, अकेले दीर्घाचार्य ने न माना। कुछ दिन पीछे दीर्घाचार्य भी उसके पक्ष में आ गया, और अपने स्वामी से अपने मन का भाव छिपाये रहा। एक दिन प्रसेनजित एक रथ में बैठ कर जिसका सारथी वहाँ दीर्घाचार्य था, बुद्धदेव के दर्शन को एक शाक्य नगर में चला गया। जब वह नगर के पास पहुंचा तो उसने राजचिह्न छत्र-चमर आदि दीर्घाचार्य को इस विचार से दे दिये कि गुरु के सामने विनीत भाव से जाना चाहिये। वह वंचक दीर्घाचार्य तुरन्त श्रावस्ती लौट गया और उसने राजचिह्न विरूधक को दे दिये और विरूधक कोशलराज के सिंहासन पर बैठ गया। राजा प्रसेनजित बुद्धदेव के