ग्यारहवाँ अध्याय
अयोध्या के जोगी, बैस, श्रीवास्तव्य, परिहार और
गहरवार वंशी राजा
जोगी—"जनश्रुति यह है कि राजा विक्रमादित्य ने अयोध्या में ८० बरस राज किया; उसके पीछे समुद्रपाल योगी ने जादू से राजा के जीव को उड़ा दिया और आप उसके शरीर में प्रविष्ट हो कर राजा बन बैठा। जोगियों का राज १७ पीढ़ी तक रहा। उन्होंने ६४३ बरस राज किया। इसमें एक एक राजा का शासन काल बहुत बड़ा होता है।" [१]
हमारा मत यह है कि अयोध्या में सनातन धर्म का प्रभाव मौर्यों के समय में भी नहीं घटा था। गुप्तों के चले जाने पर यहाँ साधुओं का राज स्थापित हो गया। राजा के शरीर में योगी के घुसने का तात्पर्य यही है कि उसने अपना अधिकार जमा लिया। गुप्तों के राज के अन्त से ६४३ बरस ४८०+६४३=११२३ में समाप्त होते हैं और यह असंभव है।
बैस—हर्षवर्द्धन के राज में जो ई० ६०१ से ६४७ तक रहा, अयोध्या, कन्नौज राज के आधीन रही। फैजाबाद जिले के भिटौरा गाँव में प्रतापशील और शीलादित्य के सिक्के मिले हैं। इन दोनों को मुद्राविज्ञान के प्रसिद्ध विद्वान् सर रिचर्ड वन प्रभाकरवर्द्धन और हर्षवर्द्धन के उपनाम बताते हैं। चीनी यात्री ने जो इस नगर का वर्णन लिखा है वह उपसंहार में दे दिया गया है।
श्रीवास्तम—(श्रीवास्तव्य)—ई० ६४७ में हर्षवर्द्धन के मरने पर उसका राज छिन्न-भिन्न हो गया और घाघरा पार के श्रीवास्तव्यों ने राजधानी और उसके आस पास के प्रान्त पर अपना अधिकार जमा लिया।
- ↑ Oudh Gazetteer, Vol. 1, page 3.