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जोगी, बैस, श्रीवास्तव्य, परिहार और गहरवार वंशी राजा

यह स्मरण रखने की बात है कि गुप्तों के चले जाने पर अयोध्या का शासन सुदूर की राजधानी से होता था और श्रीवास्तव्य, कभी पूरी और कभी अधूरी स्वतंत्रता से ईस्वी सन् की ग्यारहवीं शताब्दी के अन्त तक अयोध्या का शासन करते रहे। [१]


  1. जान पड़ता है कि ईस्वी सन् की बारहवीं शताब्दी में अयोध्या से श्रीवास्तव्यों के पांव उखड़े और देश में मुसलमानों का अधिकार हो गया। हम अपनी कायस्थ वर्ण मीमांसा की अंग्रेज़ी भूमिका में लिख चुके हैं कि हमारे मुसलमान शासकों का भी माल के काम में बिना कायस्थों के काम न चला और मिस्टर पन्नालाल जी, आई० सी० एम०, जो श्रीवास्तव्य ही हैं लिखते हैं कि ईस्वी सन् की तेरहवीं शताब्दी में अयोध्या का एक श्रीवास्तव्य उन्नाव जिले के असोहा परगने का कानूनगो मुकर्रर किया गया था। उन दिनों कानूनगो का वही काम था जो आज-कल डिप्टी कमिश्नर और मुहतमिम बन्दोवस्त करता है। इसके पीछे सुना जाता है कि सरयूपार अमोढ़े में श्रीवास्तव्य राजा रहे। चौदहवीं शताब्दी में राजा जगतसिंह सुलतानपूर के सूबेदार थे। ई० १३७६ में गोरखपूर के पास राप्ती के तट पर होमनगढ़ के डोम राजा ने अमेदिर परगने के कुरघंड गांव में एक पाँडे ब्राह्मण से कहा कि हमें अपनी बेटी दे दो। ब्राह्मण ने न माना और डोम ने उसके परिवार को कारागार में बन्द कर दिया। लड़की अयोध्या की यात्रा के बहाने राजा जगतसिंह के पास पहुंची और उनसे सरन मांगी। राजा जगतसिंह ने डोम पर चढ़ाई कर दी और उसको मार कर लड़की उसके बाप को सौंप दी। ब्राह्मण लड़की पाकर कृतार्थ हो गया और उसने कहा "मैं आप को क्या दूँ मेरे पास सब से मंहगी वस्तु मेरा यज्ञोपवीत है" और उसने अपना जनेऊ उतार कर राजा के गले में डाल दिया। राजा ने ब्राह्मण का प्रतिग्रह स्वीकार कर लिया और उनके वंशज अब तक अमोदा के पांडे कहलाते हैं। दिल्ली के साम्राट ने जगतसिंह को अमोढ़ा का राज दे दिया। कुछ दिन पीछे सूर्यवंशियों ने उनकी रियासत बंटा ली तो भी श्रीवास्तव्य बहुत दिनों तक अमोढ़ा के राजा रहे । अयोध्या के निकले हुये और श्रीवास्तव्यों का हाल उपसंहार में है।
    फ़ैज़ाबाद और उसके पास के जिलों के कायस्थ अब भी ब्राह्मणों और ठाकुरों के बाद हिन्दू समाज के प्रतिष्ठित अंग माने जाते हैं, और पिछले सौ बरस के भीतर उस वंश में प्रसिद्ध पुरुष नवाब आसफ़द्दौला के मंत्री महाराज टिकैतराय, बलरामपुर के जनरल रामशंकर, फ़ैज़ाबाद के राय राम शरणदास बहादुर और अयोध्या के आनरेबुल राय श्रीराम बहादुर सी० आई० थे। अयोध्या छोड़ने के पीछे श्रीवास्तव्य इलाहाबाद जिले के कड़े में आकर बसे और दूर दूर तक फैले। कड़े को पहिले कट कहते थे। यह नगर बहुत बड़ा था। यहां से पाँच मील उत्तर पश्चिम पारस गांव में सं० ११९७ का एक शिलालेख मिला है उसमें कड़े को श्रीमान् लिखा है। गढ़वा का शिलालेख सं० ११९९ का है। इसमें से जैसा ऊपर लिखा जा चुका है श्रीवास्तव्य ठाकुर कहलाते हैं। हम यह भी लिख चुके हैं कि गढ़वा में श्रीवास्तव्य ठाकुर ने नवग्रह का मन्दिर बनाया था और मेवहड़ में सिद्धेश्वर का। इससे विदिन है कि सात सौ बरस पहिले इलाहाबाद प्रान्त के श्रीवास्तव्य बड़े प्रतिष्ठित सनातन-धर्मी थे।