अवध पर आक्रमण किया और बहराइच में अपनी हड्डियाँ सड़ने को छोड़ गया। उस समय अवध अनेक छोटे छोटे राज्यों में बंटा हुआ था परन्तु अवध ग़जेटियर के अनुसार उसके मुख्य सामना करनेवाले श्रीवास्तव्य थे यद्यपि लोग यही कहते हैं कि राजा सुहेलदेव ने जय पाई थी।
चन्द्र के विषय में एक शिलालेख लिखा है कि उसने अनेक शत्रु राजाओं को जीत कर कान्यकुब्ज को अपनी राजधानी बनाया। मिस्टर सी० ची० वैद्य लिखते हैं कि "हर्ष के समय से कन्नौज, भारतवर्ष का रोम, अथवा कुस्तुन्तुनिया हो रहा है। जो राजा उसे स्वाधिकृत करता वह भारतवर्ष का सम्राट माना जाता।" इस लिये चन्द्र ने यद्यपि कन्नौज के प्रतीहारों के आखिरी राजा को आसानो से जीत लिया तथापि अन्य राजाओं ने उसका विरोध किया होगा। चन्द्र के दो लेखों में पाँचाल के राजा के लिये "चपल" विशेषण प्रयोग किया गया है। इससे यह अनुमान किया जाता है कि प्रतिहार राजा दूसरे बाजीराव के समान भागता फिरता था। और चन्द्र उसका पीछा करता था। "चन्द्र ने कन्नौज का राज लेकर देश को तुर्कों के त्रास से मुक्त किया। ऊपर लिखा जा चुका है कि कन्नौज के प्रतीहार राजा ग़जनी के सुलतान को कर दिया करते थे। चन्द्र ने कर वसूल करने वालों को मार भगाया। उसने काशी चुशिक (कन्नौज?) उत्तर-कोशल भी अपने अधीन कर लिया था।
गहरवार वंश का सब से प्रसिद्ध राजा गोविन्द चन्द्र था।
गोविन्द चन्द्र बड़ा प्रतापी राजा था। उसी ने सबसे पहिले नरपति, हयपति, गजपति, राज्य विजेता का विरुद ग्रहण किया। इसकी दूसरी राजधानी बनारस थी। उसके युद्ध मंत्री लक्ष्मीधर कायस्थ श्रीवास्तव्य ने व्यवहार कल्पद्रुम नाम का धर्मशास्त्र का ग्रन्थ रचा।[१] यह बड़ा दानी राजा था। इसके अब तक ४० दान पत्र मिले हैं।
- ↑ Colebrooke's Digest of Hindu Law.