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अयोध्या का इतिहास

अलप्तगीन हार गया और बलबन की आज्ञा से उसका सिर काट कर अयोध्या के फाटक पर रख दिया गया। यह फाटक कहाँ था, इसका पता अभी तक नहीं लगा। तुग़रल को भी उसी के लश्कर में कुछ लोगों ने छापा मार कर मार डाला। इसके थोड़े ही दिन पोछे अयोध्या के एक दूसरे हाकिम फ़रहत खाँ ने शराब के नशे में एक नीच को मार डाला। उसकी विधवा ने बलबन से फ़रयाद की। बलबन पहिले आप ही दास था, उसने फ़रहत खाँ के ५०० कोड़े लगवाये और उसे विधवा को सौंप दिया।

बादशाह कैबाद और उसके बाप बुगरा खाँ में भी यहीं मेल-मिलाप हुआ था। एक की सेना घाघरा के इस पार पड़ी थी और दूसरे की उस पार पड़ी थी। फरहत के निकाले जाने पर खान जहाँ अवध का हाकिम बना। उसी के शासन-काल में हिन्दी, फारसी का सुप्रसिद्ध कवि अमीर खुसरो दो वर्ष तक अयोध्या में रहा। यहीं की बोली में [१] इसने फारसी-हिन्दी का कोश खालिकबारी रचा। उसके अनन्तर खिलजी वंश के संस्थापक जलालुद्दीन का भतीजा अलाउद्दीन अयोध्या का शासक रहा। परन्तु वह इलाहाबाद जिले के कड़ा नगर में रहता था और वहीं उसने अपने चचा का सिर कटवा कर उसके धड़ को गङ्गा के रेते में फेंकवा दिया था। इन्हीं दिनों मुसलमानों के अत्याचार से पीड़ित हो कर कुछ क्षत्रिय स्याम देश को चले गये और वहाँ अयोध्या नगर बसाया जो आज-कल के नक़शों में जूथिया कहलाता है। इस नगर में एक बड़ा


  1. खालिकबारी की हिन्दी आदि से अन्त तक अयोध्या में अब तक बोली जाती है। यथा:—

    इम्शब आज रात जो भई।
    दी शब काल रात जो गई॥
    बिया बिरादर आउ रे भाई।
    बिनशीं मादर बैठरे(री नहीं)माई॥