१३४८ में अयोध्या आया। उसके समय मलिक सिग़ीन और आयीनुलमुल्क अयोध्या के शासक रहे। अकबरपूर में एक छोटे मक़बरे में एक शिला लेख है जिससे प्रकट होता है कि उस समय मुसलिम राज स्थिर हो गया था और धर्मार्थ जागीरें लगायी जाती थीं।
थोड़े दिन पीछे अयोध्या जौनपूर की शरक़ी बादशाही में मिल गया।
बादशाह बाबर ई० सन १५२८ में दल बल समेत अयोध्या की ओर बढ़ा और सेरवा और घाघरा के सङ्गम पर उसने डेरा डाला। यह सङ्गम अयोध्या से तीन कोस पूर्व था। यहाँ वह एक सप्ताह तक आस-पास के देश से कर लेने का प्रबन्ध करता रहा। एक दिन वह अयोध्या के सुप्रसिद्ध मुसलमान फ़कीर फ़जल अब्बास क़लंदर के दर्शन को आया। उस समय बाबर के साथ उसका सेनापति मीर बाक़ी ताशकंदी भी था। बाबर ने फ़कीर को बड़े महंगे कपड़े और रत्न भेंट किये परन्तु फ़कीर ने उन्हें स्वीकार न किया। बाबर सब वहीं छोड़ कर अपने पड़ाव पर लौट गया। वहाँ पहुँचने पर उसने देखा कि सारी भेंट उसके आगे पहुँच गयी। बाबर चकित हो गया और नित्य फ़कीर के दर्शन को जाने लगा।एक दिन फ़कीर ने कहा कि जन्म स्थान का मन्दिर तोड़वा कर मेरी नमाज के लिये एक मसजिद बनवा दो। बाबर ने कहा कि मैं आपके लिये इसी मन्दिर के पास ही मसजिद बनवाये देता हूँ। मन्दिर तोड़ना मेरे “उसूल के खिलाफ है।" इस पर आग्रही फ़कीर बोल उठा "मैं इस मन्दिर को तुड़वा कर उसी जगह मसजिद बनवाना चाहता हूँ। तू न मानेगा तो तुझे बद दुआ दूंगा।" बाबर काँप उठा और उसे अगत्या फ़कीर की बात माननी पड़ी और मीर बाक़ी को आज्ञा दे कर लौट गया।
- जिस गाँव के पास जलालउल्लद्दीन का सिर काटा गया था वह अब तक इलाहाबाद जिले में गुमसरा कहलाता है।