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अयोध्या का इतिहास

के वंशधर करते हैं। ठाकुर जी काले राम जी के नाम से प्रसिद्ध हैं। इसमें एक बड़े काले पत्थर पर राम पंचायतन की पाँच मूर्तियाँ खुदी हैं।

बाक़ी बेग ने मन्दिर की ही सामग्री से मसजिद बनवाई थी। मसजिद के भीतर बारह और बाहर फाटक पर दो काले, कसौटी के पत्थर के स्तम्भ लगे हुए हैं। केवल वे स्तम्भ ही अब प्राचीन मन्दिर के स्मारक रह गये हैं। ऐसे ही दो स्तम्भ उक्त शाह जी की क़ब्र पर थे। जो अब फ़ैज़ाबाद के अजायब घर में रक्खे हुए हैं। इन स्तम्भों को देख कर प्राचीन मन्दिर की सुन्दरता का कुछ कुछ अनुमान किया जा सकता है। इनकी लम्बाई सात से आठ फ़ीट तक है। किनारों पर और बीच में चौखूँटे हैं और शेष भाग गोल अष्टपहल है। इन पर सुन्दर नक़्क़ाशी का काम बना हुआ है। मसजिद के भीतर एवं फाटक पर दो लेख खुदे हुए हैं उनसे मसजिद के सम्बन्ध रखने वाली बातें मालूम होती हैं। मसजिद के भीतर वाला लेख इस प्रकार है—

بفرموده شاه بابر که عدلش
بنایست تا کاخ گردون گردوں ملاقي
بنا کرد این محبط قدسیان
امیر سعادت نشان مير باقي
بود خیر باقی چو سال بنایش
میان شد که گفتم بود خیر باقی

(उपर्युक्त शेरों का नागरी अक्षर में पाठ।)

(१) बफ़रमूद-ऐ-शाह बाबर कि अदलश;
बनाईस्त ता काख़े गरदूँ मुलाक़ी॥
(२) बिना कर्दे ईं महबते कुदसियां;
अमीरे सआदत निशां मीर बाक़ी॥