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अयोध्या का इतिहास

 

(अनुवाद)

(१)उस परमात्मा के नाम से जो महान् और बुद्धिमान है, जो सम्पूर्ण जगत का सृष्टिकर्त्ता तथा स्वयं निवासरहित है।
(२)उसकी स्तुति के बाद मुस्तफ़ा की तारीफ़ है। जो दोनों जहान तथा पैगम्बरों के सरदार हैं।
(३)संसार में बाबर और क़लन्दर की कथा प्रसिद्ध है। जिससे उसे संसार चक्र में सफलता प्राप्त हुई है।

यहाँ हम इतना और लिख चाहते हैं कि बहुत थोड़े ही तोड़ फोड़ से मन्दिर की मसजिद बन गयी है। पुराने रावटी के खंभे अब मसजिद की शोभा बढ़ा रहे हैं। मूसा आशिक़ान की क़ब्र कटरे की सड़क पर वसिष्ठ कुँड के पास अब भी बतायी जाती है परन्तु क़ब्र का निशान नहीं है और वह जगह बहुत ही गन्दी है। एक जगह जन्म स्थान के दो खंभे गड़े हैं। कहा जाता है कि जब मूसा आशिक़ान मरने लगे तो उन्होंने अपने शिष्यों से कहा कि जन्म-स्थान का मन्दिर हमारे हो कहने से तोड़ा गया है इससे इसके दो खंभे बिछाकर हमारी लाश रक्खी जाय और दो हमारे सिरहाने गाड़ दिये जायँ।

मुग़ल साम्राज्य में अयोध्या की महिमा घट गयी। इतना पता लगता है कि अकबर ने यहाँ ताँबे के सिक्कों की एक टकसाल स्थापित की थी।