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पृष्ठ:अयोध्या का इतिहास.pdf/१८५

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चौदहवाँ अध्याय।
नवाब वज़ीरों के शासन में अयोध्या।

ई॰ १७३१ (वि॰ १७८८) में सआदत खां जिसका नाम मुहम्मद अमीन बुरहानुल् मुल्क था अवध का सूबेदार बनाया गया। सआदत खां पहिले दिल्ली के बादशाह मुहम्मद शाह का वज़ीर था। इसी से उसके वंशज स्वतंत्र हो जाने पर भी नवाब वज़ीर कहलाते थे। वह बादशाही के लड़ाई झगड़ों में फँसा रहा और अवध में बहुत कम आया। उसका प्रबल सामना करने वाला अवध में अमेठी का राजा गुरुदत्त सिंह था जिसकी वीरता का बखान उसके दरबार के कवि कवीन्द्र ने यों किया है—

समर अमेठी के सरोष गुरुदत्तसिंह,
सादत की सेना समसेरन ते भानी है।
भगत कविन्द काली हुलसी असीसन को,
सीसन को ईस की जमाति सरसानी है॥
तहां एक जोगिनी सुभट खोपरी लै तामें,
सोनित पियत ताकी उपमा बखानी है।
प्यालो लै चिनी को छकी जोबन तरंग मानो,
रंग हेतु पीवति मजीठ मुगलानी है॥

[] प्रचलित इतिहास में इस लड़ाई का उल्लेख नहीं है। केवल इतना ही मिलता है कि सआदत खां के उत्तराधिकारी नवाब सफ़दर जंग ने राजा गुरुदत्त सिंह पर चढ़ाई की और अठारह दिन तक रायपुर के गढ़ को घेरे पड़ा था। पीछे गढ़ छोड़कर राजा रामनगर के बन को


  1. महाराजा प्रताप नरायण सिंह के रसकुसुमाकर पृ॰ १८७ से उद्धृत।