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अयोध्या का इतिहास

भाग गया। परन्तु हम उस घटना के झूठ होने का कोई कारण नहीं देखते जिसका उल्लेख ऊपर की घनाक्षरी में है।

सआदत की दूसरी लड़ाई गंगा के दक्षिण असोथर के राजा भगवन्त राय खीचर के साथ हुई जिसमें खीचर राजा मारा गया।

सआदत खाँ का प्रधान मंत्री दीवान दयाशंकर था।

सआदत खाँ के पीछे उसका दामाद मन्सूर अली उपनाम सफ़दर जंग अवध का शासक हुआ। वह भी दिल्ली के बादशाह ही के झगड़ों में फँसा रहा। ऐसे एक झगड़े का वर्णन सूदन कवि ने अपने सुजान चरित में किया है। यह अंश हमारे सिलेक्शन्स फ़्राम हिन्दी लिटरेचर की जिल्द १ में उद्धृत हैं।[१] इसमें मन्सूर ने सूरजमल जाट को बुला कर दिल्ली शहर लुटवाया और बादशाही सेना को परास्त किया था।

सफ़दर जंग के समय से अयोध्या के दिन फिरे। उसका प्रधानमंत्री और सेना नायक इटावे का रहने वाला सकसेना कायस्थ नवल राय था। नवल राय ने रुहेलों को अवध से मार भगाया और अन्त में फ़र्रुखाबाद के नवाब बंगश की लड़ाई में धोखे से मार डाला गया। नवलराय वीर तो था ही बड़ा धर्मात्मा भी था और नवाब वज़ीरों में बड़ा प्रशंसनीय गुण यह था कि अपने सेवकों और अपनी प्रजा को पूरी धार्मिक स्वतंत्रता दिये हुये थे। पण्डित माधवप्रसाद शुक्ल ने सुदर्शन पत्र में लिखा है कि मुसलमान राज में अयोध्या मुसलमान मुर्दों के लिये "करबला" हुई। मन्दिरों की जगह पर मसजिदों और मक़बरों का अधिकार हुआ। "अयोध्या का बिलकुल स्वरूप ही बदल दिया।" ऐसी आख्यायिका और मस्नवी गढ़ी गयीं जिनसे यह सिद्ध हो कि मुसलमान औलिये फ़कीरों का यहाँ "क़दीमी अधिकार है……।"


  1. Selections from Hindi Literature published by the Calcutta University, book I.