पृष्ठ:अयोध्या का इतिहास.pdf/१८७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
१५७
नवाब वज़ीरों के शासन में अयोध्या

इसी समय नवाब सफ़दर जङ्ग के कृपा पात्र सुचतुर दीवान नवलराय ने अयोध्या में नागेश्वर नाथ महादेव का वर्तमान मन्दिर बनवाया। लक्ष्मण जी के मन्दिर के विषय में ऐसी कथा प्रसिद्ध है कि उन्हीं दिनों किसी कायस्थ ने बनवाया था। हमने जहाँ तक जाँच की है इसका भी बनवाने वाला नवलराय ही था। नवलराय का मकान नवलराय के छत्ते के नाम से अब तक सरयू-तट पर विद्यमान है। प्रयागराज में जहाँ अब तक दारागञ्ज में उनके वंशन रहते हैं नवलराय का तालाब है जिसमें आज-कल स्थानिक म्युनिसिपलिटी गन्दा पानी भर रही है।

सफदर जङ्ग के पीछे उसका बेटा शुजाउद्दौला बादशाह हुआ। उसने आजकल की अयोध्या से तीन मील पश्चिम फ़ैज़ाबाद नगर बसाया और उसे इतना सजाया कि उसकी शोभा देख कर अंगरेज़ यात्री चकित हो जाते थे। उसी ने घाघरा के तट पर ऊँचा कोट बनवाया। शुजाउद्दौला ने अंगरेजों से सन्धि कर ली। रुहेलखंड जीत लिया गया और इलाहाबाद और अवध के सूबों में मिला दिया गया।

उसी शुजाउद्दौला के समय में फ़ैज़ाबाद में तिरपौलिया आदि इमारतें बनी और अनेक बाग़ बने जैसे, लाल बारा, ऐश बाग़, बुलंद बारा, राजा भाऊलाल का बाग़ और अंगूरी बाग़। जवाहिर बाग़ में शुजाउद्दौला की मलका बहू बेगम का मकबरा है। हयात बख्श और फ़रहत बख्श दो बारा अयोध्या में थे। इनमें से हयात बख्श बादशाह के मंत्री महाराज बालकृष्ण ने अयोध्या के सुप्रसिद्ध पंडित उमापति त्रिपाठी को दिला दिया। फ़रहत बख्श का एक भाग राजडुमरावँ के पास है और दूसरा भाग दिगंबरी अखाड़ेवालों को गुप्तार पार्क के बदले दे दिया गया।

शुजाउद्दौला के समय में अयोध्या में खत्री आकर बस गये। ये सब अधिकांश "सूरत सिंह" के हाते में रहते थे परन्तु काल ने सब को नष्ट कर दिया। शुजाउद्दौला के शासन की एक घटना यहाँ पर दिखाने के लिये