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अयोध्या का इतिहास

लिखी जाती है कि मुसलमान राजा स्वतंत्र होने पर भी प्रजा को सताते तो प्रजा उसका प्रतीकार भी कर सकती थी।

शुजाउद्दौला [१] एक दिन हवा खाने निकले तो उनकी आँख एक जवान खत्री स्त्री पर पड़ी। उसको देखते ही नवाब साहेब उस पर लट्टू हो गये। महल में लौटने पर रात बड़ी बेचैनी से कटी। दूसरे दिन राजा हिम्मत बहादुर गोशाईं ने दो हिन्दू कुटनियाँ नवाब से मिलाई। नवाब ने उन्हें इनाम देने का वादा करके उस स्त्री का पता लगाने भेजा। उन्होंने उसका खोज लगा कर नवाब को सूचित किया। तीन दिन बीते राजा गोशाईं ने अपने साथ के कुछ नागे उस स्त्री के घर आधी रात को भेज दिये और वे स्त्री का पलङ्ग उठा कर नवाब साहेब के पास लाये। नवाब ने अपना मनोरथ पूरा करके सी को फिर अपने घर भेजवा दिया। स्त्री ने अपने घर के पुरुषों से अपनी दुर्गति की कहानी कही। घरवालों ने समझ लिया कि शुजाउद्दौला की अनुमति से नागे आये थे। उनमें कुछ लोग राजा रामनारायण दीवान के पास पहुँचे और अपनी पगड़ियाँ धरती पर डाल कर बोले "प्रजा पालन इसी का नाम है? हम लोग अब यहाँ नहीं रह सकते; देश छोड़ कर चल जायँगे।" इतना सुनते ही राजा रामनारायण अपने भतीजे राजा जगत नारायण और कई हजार खत्री नङ्गे सिर और नङ्गे पाँव इस्माइल ख़ाँ काबुली के पास गये और कहा कि "बादशाह ने प्रजा पीड़न पर कमर बाँधी है। आप हमें आज्ञा दे यहाँ से निकल कर और किसी देश को चले जायें।" इस्माइल ख़ाँ बहुत बिगड़ा और कई मुग़ल सरदारों को बुला कर सारा व्यौरा कह सुनाया और यह निश्चित हुआ कि हिम्मत बहादुर और उसके भाई को नवाब से ले कर दण्ड देना चाहिये। नवाव न माने तो महम्मद क़ुली ख़ाँ को बुला कर सिंहासन पर बैठा देना चाहिये और नवाब को जागीर दे दी जाय। नवाब ने उत्तर दिया कि "हिम्मत बहादुर ने जो कुछ किया


  1. नज्मुल्ग़नी खाँ कृत तारीखे, अवध हिस्सा १ पृ॰ २८२।