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नवाब वज़ीरों के शासन में अयोध्या

हमारी आज्ञा से किया। जब तक हम जीते हैं तब तक किसी की सामर्थ्य नहीं है कि हिम्मत बहादुर को दुख दें। हमें ऐसे राज का लोभ नहीं है। तुम अपनी भीड़-भाड़ के घमण्ड में हो, हम भी तुम्हारा सामना करने को तैयार हैं।" इस पर मुग़ल सरदारों ने दर्बार में आना-जाना बन्द कर दिया और मुहम्मद क़ुली खाँ को इलाहाबाद से बुलवाया। शुजाउद्दौला की माता ने यह समाचार सुना तो राजा रामनारायण को अपनी ड्योढ़ी पर बुला कर परदे की ओट में बैठ कर उससे बोलीं कि "अपने स्वामी के बेटे के साथ तुमको ऐसा बर्ताव करना उचित नहीं है। तुमने उसके बाप से लाखों रुपये पाये। एक छोटी सी बात के लिये इतना दङ्गा करना उचित नहीं है। मैं मानती हूँ कि महम्मद क़ुली ख़ाँ सफ़दर जङ्ग का भतीजा है परन्तु बाप का नाम बेटे से चलता है, भतीजे से नहीं। रामनारायण ने उत्तर दिया कि "आपके बेटे मेरी जान चाहें तो हाज़िर है। परन्तु उनकी चाल से देश उजड़ा जाता है और हित बैरी बने जाते हैं। यह सारा टंटा बखेड़ा इस प्रयोजन से किया गया कि फिर ऐसा काम न करें। इससे सारे हिन्दुस्तान में उनकी बदनामी होगी" और राजा रामनारायण ने मुग़ल सरदारों को बुला कर ऐसी बातें कहीं कि सब राज़ी हो गये और खत्रियों को समझा बुझा कर घर भेज दिया।

हम अवध के बादशाहों के समय की एक दूसरी घटना लिखते हैं जिससे विदित होगा कि उस समय में पुलिस का प्रबन्ध कैसा था। बादशाह ग़ाज़ीउद्दीन हैदर के राज में बालगोविन्द महाजन के घर पर संध्या समय डाका पड़ा। उसका अपराध धूमीवेग कोतवाल के सिर मढ़ा गया। उसने यह विनय किया कि ये डाकू बाहर के न थे। रोशन अली के घर में बहुत से बदमाश रहते हैं और रोशनअली का नाम डर के मारे कोई नहीं लेता। परन्तु कोलवाल की बात सुनी न गई और कोतवाल अपनी अप्रतिष्ठा से बचने के लिये विष खा कर मर गया।