पृष्ठ:अयोध्या का इतिहास.pdf/१९०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
१६०
अयोध्या का इतिहास


शुजाउद्दौला के मरने पर फै़ज़ाबाद उनकी विधवा बहू बेगम की जागीर में रहा और उनके बेटे आसफ़उद्दौला ने लखनऊ को अपनी राजधानी बनाया। बहू बेगम का नगर में बड़ा आतङ्क था। जब उसकी सवारी निकलती थी तो अयोध्या और फै़ज़ाबाद में घरों के किवाड़े बन्द हो जाते थे और जो तिलक लगाये हुये निकलता था उसको दण्ड दिया जाता था। इसी से उस समय का एक दोहा प्रसिद्ध है:—

अवध वसन को मन चहै, पै बसिये केहि ओर।
तीन दुष्ट एहि में रहैं, बानर, बेगम, चोर॥

इसी समय वारन हेस्टिंग्स गवर्नर जनरल के शासन में बहू बेगम और उनकी सास को नाना प्रकार के दुख देकर एक करोड़ बीस लाख रुपया ले लिया। यह घटना ईष्ट इण्डिया कंपनी के शासन पर काला धब्बा है।

आसफुद्दौला के मंत्री महाराजा टिकयतराय श्रीवास्तव कायस्थ थे। पहिले टिकयतराय बहुत छोटे पदों पर रहे। पीछे अपनी नीति-निपुणता से दीवान और राजा का पद पाया। दान पुण्य में बहुत प्रसिद्ध थे। बादशाही ख़ज़ाने से हज़ारों रुपये ब्राह्मणों को दिये जाते थे। धर्मात्मा राजा साहेब ने कई बाग़ लगवाये और अनेक पुल मन्दिर और धर्मशालायें बनवायीं अयोध्या की हनुमानगढ़ी इन्हीं की धर्म-कीर्ति का प्रमाण-स्वरूप अब तक वर्तमान है। इनके दान से अब तक हज़ारों ब्राह्मण जी रहे हैं। लखनऊ का राजा का बाज़ार इन्हीं का बसाया हुआ है। प्रयागराज में मोती महल जिसमें आजकल दारागञ्ज हाईस्कूल है इन्हीं की बनवायी धर्मशाला थी। इस महापुरुष के विषय में तारीखे़ अवध में लिखा है कि राज काज से छुट्टी पाने पर इसके यहाँ मस्नवी मौलाना रूम और शेख सादी और हाफ़िज़ का चर्चा रहा करता था। ज्ञान प्रकाश में लिखा है कि राजा टिकयतराय ने एक मसजिद और एक इमाम बाड़ा भी बनवाया था।