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अयोध्या के शाकद्वीपी राजा

शाकद्वीपियों के इस देश में आकर बसने का कारण

श्रीकृष्ण और जाम्बवती के पुत्र शाम्ब अपने पिता के शाप से कोढ़ी हो गये थे। इस रोग से मुक्त होने का उपाय उनको यही सूझा कि सूर्य नारायण की उपासना करें। इस विचार से उन्होंने देवर्षि नारद से सूर्य नारायण की उपासना की विधि पूछी और उत्तर को चले गये। वहाँ उन्होंने कड़ी तपस्या की और रोग से मुक्त हुये। इधर अयोध्या के राजा बृहद्वल [१] ने देवताओं की आराधना की विधि कुल-गुरु वसिष्ठ से पूछी। वसिष्ठ जी ने उनको सारी विधि बतलाई और नारद के उपदेश से रोग से मुक्त होने का वृतान्त कहा। इन घटनाओं को लेकर वेदव्यास ने शाम्ब पुराण रचा और यह पुराण सौनकादि की प्रार्थना से सूत ने नैमिषारण्य में सुनाया। शाम्ब पुराण में लिखा है कि कुष्ठ रोग से मुक्त होने पर शाम्ब चन्द्र-भागा नदी में स्नान करने के लिये गये। यहाँ उनको सूर्य नारायण की एक प्रतिमा देख पड़ी। शाम्ब सूर्य-देव के भक्त थे ही उन्होंने यह संकल्प किया कि एक मन्दिर बनवा कर मूर्ति की उसमें स्थापना करा दें और एक योग्य ब्राह्मण को पूजा अर्चा के लिये नियत कर दें। ऐसे ब्राह्मण के लिये उन्होंने देवर्षि नारद से पूछा तो नारद ने उत्तर दिया कि इस विषय में तुम्हें सूर्यनारायण की आज्ञा लेनी चाहिये। इस पर शाम्ब फिर सूर्यदेव की तपस्या करने लगे। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर सूर्यनारायण ने उनको दर्शन दिया और बोले कि इस देश में काल पड़ा हुआ है। शाकद्वीप में ऐसा ब्राह्मण मिल जायगा। तुम शाकद्वीप चले जाओ और वहाँ से द्वारका में उस ब्राह्मण को ले आओ। शाम्ब ने द्वारका जाकर श्रीकृष्ण जी से सारा वृत्तान्त कहा और उनकी आज्ञा से गरुड़ पर सवार होकर शाकद्वीप को गये और वहाँ से अट्ठारह ब्राह्मण लाये, जिनके नाम ये हैं:—१ मिहिरांशु,


  1. सूर्यवंशी राजाओं की सूची का ६४वाँ राजा जो महाभारत में अभिमन्यु के हाथ से मारा गया था।