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पृष्ठ:अयोध्या का इतिहास.pdf/१९६

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अयोध्या का इतिहास

२ शुभाशु, ३ सुधर्म्मा, ४ सुमति, ५ बसु ; ६ श्रुतिकीर्ति, ७ श्रुतायु, ८ भरद्वाज, ९ पराशर, १० कौण्डिन्य, ११ कश्यप, १२ गर्ग, १३ भृगु, १४ भव्यमति, १५ नल, १६ सूर्यदत्त, १७ अर्कदत्त, १८ कौशिक।

फिर मन्दिर बनवा कर उस मूत्ति की प्रतिष्ठा की। जब ब्राह्मण लोग प्रतिष्ठा से निवृत्त हुये तो अपने देश को चले। श्रीकृष्ण जी ने उनसे कहा कि कुछ दिन यहाँ और ठहरो। इसके पीछे गरुड़ को आज्ञा दी गई इन ब्राह्मणों को शाकद्वीप पहुँचा दो । गरुड़ ने उन लोगों से यह प्रतिज्ञा करा ली कि जब शाकद्वीप को प्रस्थान करें तो बीच में कहीं न ठहरें। ब्राह्मण लोग ३० वर्ष तक द्वारका में रहे।

मगध में शाकद्वीपियों का निवास

इसी बीच में श्रीकृष्ण जी ने लीला सँवरण किया। तब उन ब्राह्मणों को द्वारका में रहना अच्छा न लगा और गरुड़ पर सवार हो कर शाकद्वीप की ओर चले। जब मगध-देश के ऊपर पहुंचे तो वहाँ रोना-पीटना सुन पड़ा। ब्राह्मण लोग बड़े व्यग्र थे। उनके पूछने पर गरुड़ ने कहा कि मगध-देश के राजा धृष्टकेतु को कोढ़ हो गया है इसी कारण उसने मरने की ठान ली है और चिता के लिये लकड़ियों का ढेर लगा है। राजा बड़ा धर्मात्मा है और उसके राज में सब सुखी हैं। इसी से उसकी सब प्रजा उसके लिये रो रही है। ब्राह्मणों को दया आई और उन्होंने गरुड़ से कहा कि 'क्या इस देश में ऐसा तपस्वी नहीं है जो राजा को इस रोग से मुक्त करे? गरुड़ ने उत्तर दिया यहाँ ऐसा कोई होता तो शाम्ब आप लोगों को क्यों बुलाते। ब्राह्मणों ने गरुड़ से कहा कि पृथ्वी पर उतरो। राजा उनके दर्शनों से कृतकृत्य हो गया। मिहरांशु ने उसे अपना चरणोदक पिलाया और राजा का कोढ़ अच्छा हो गया। तब ब्राह्मणों ने गरुड़ से कहा कि हमें शाकद्वीप पहुँचा दो। गरुड़ ने कहा कि आप से प्रतिज्ञा करा चुका हूँ अब आप यहीं रहिये। कृतज्ञ राजा ने ब्राह्मणों को अपने देश में आदर से रक्खा और गङ्गा-तट पर कई गाँव दिये। ब्राह्मणों