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अयोध्या के शाकद्वीपी राजा

से चार अर्थात् श्रुतिकीर्ति, श्रुतायु, सुधर्म्मा, और सुमति ने सन्यास ले लिया और तपस्या करने को बदरिकाश्रम चले गये। शेष १४ मगध में रहे और वसु ने अपनी बेटियाँ उनको विवाह दी। उन्हीं की सन्तान आज-कल मगध देश में बसी है।

गोत्र और शाखा

मिहरांशु, भारद्वाज, कौण्डिन्य, कश्यप, गर्ग की सन्तान बढ़ी और प्रसिद्ध हुई। इसी कारण शाकद्वीपियों के छः घर बन गये और प्रत्येक घर के मूल-पुरुष का नाम गोत्र कहलाया। आज-कल शाकद्वीपियों के ७२ घर गिने जाते हैं, अर्थात् उर २४, आदित्य १२, मण्डल १२, अर्क ७। शेष इन्हीं की शाखायें हैं।

मिहरांशु की सन्तान ने बड़े बड़े काम किये थे इसलिये उनकी शाखा अधिक प्रतिष्ठित मानी जाती है। जो शाखा जिस गाँव में बसी उसी गाँव के नाम से प्रसिद्ध हुई। जैसे उर से उर्वार।

हमारा अभिप्राय केवल महाराजा मानसिंह के कुल का वर्णन करना है। इसलिये और कुलों के विस्तार लिखने की आवश्यकता नहीं।

अयोध्या का शाकद्वीपी राजवंश

इस वंश के पहिले प्रसिद्ध राजा महाराजा मानसिंह हुये। महाराजा साहेब गर्ग गात्र के थे और इनके पूर्व पुरुष बिलासू गाँव में रहते थे। यह गाँव गङ्गा तट पर अब तक बसा हुआ है और राजा धृष्टकेतु से मिला था। यहाँ गर्ग गोत्र के बिलसिया ब्राह्मण रहते हैं और उनसे बिरादरी का आना जाना अब तक चला जाता है। इसी कारण महाराजा साहेब का गर्ग गोत्र विलासियाँ पुर और द्वादश आदित्य शाखा है। बिलासी गाँव के एक बड़े प्रसिद्ध पण्डित दिल्ली पहुंचे और गुणज्ञ अकबर बादशाह ने उनको मझवारी गाँव की जिमींदारी दी। यह गाँव अकबर बादशाह के समय तक उनके पास रहा। अकबर के मरने पर मझवारी के पुराने जिमीदारों ने डाका डाल कर सारे पाठकों