पृष्ठ:अयोध्या का इतिहास.pdf/२२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१८४
अयोध्या का इतिहास

 

पञ्चस्युर्विषयप्रहिण स्तत्र,[१]
येनादाहि विजित्य खाण्डव मठे गाण्डीविना वज्रिणम्।
युद्धेपाशुपतास्त्र मन्धकरिपोश्चालाभि दैत्यानबहून्,
इन्द्रार्द्धासनमध्यरोहि जयिना यत् कालिकेयादिकान्।
हत्वास्वैरमकारि वंशविपिनच्छेदः कुरूणां विभोः,
ततोऽर्जुनादभिमन्युः तत परीक्षितः ततो जम्मेजयः।
ततः क्षेमकः ततो नरवाहनः ततः शतानीकः तस्मादुदयनः,
ततः परम् तत् प्रभृतिष्वविच्छिन्न संतानेष्वयो।
भ्या सिंहासनमासीनेष्व एकाद्नषष्टि चक्रवर्तिषु,
तवंश्यो विजयादित्यो नाम राजा प्रविजिगीषया।
दक्षिणापथं गत्वा[२] त्रिलोचनपल्लवमधिक्षिप्य,
दैव दुरीहया लोकान्तरमगमत्।. . . .


अपिच सूर्यान्यये सुरपति प्रतिमः प्रभावः,
श्री राजराज इतियो जगतिव्यराजत्।
नाथः समस्त नरनाथकिरीट कोटि-
रत्नप्रभा पटलपाटलपादपीठः।

(अनुवाद)

"श्रीधाम पुरुषोत्तम नारायण के नाभी कमल से स्वयंभू ब्रह्मा का जन्म हुआ। उनसे मानस पुत्र अत्रिजन्मे। उन मुनि से चन्द्र की उत्पत्ति हुई जिससे

चन्द्रवंश चला। उस अमृत के उत्पन्न करनेवाले चन्द्र से बुध हुआ, जिसे देवता नमस्कार करते हैं। उससे चक्रवर्ती वीर पुरूरवा का जन्म हुआ। उसका बेटा आयुष, उसका नहुप्, उससे चक्रवर्ती ययाति हुआ जिससे अनेक वंश चले। उससे पूरु चक्रवर्ती हुआ। उसका बेटा


  1. इस वंशावली में वंश के राजाओं का क्रम सूचित नहीं होता।
  2. सूर्यवंशी दक्षिण में कब गये इसका पता नहीं लगता।