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अयोध्या के सोलकी राजा

जन्मेजय हुआ जिसने तीन अश्वमेध यज्ञ किये, उससे प्राविश, उससे सैन्ययाति, उससे हयपति, उससे सार्वभौम, उससे जयसेन, उससे महाभौम, उससे देशानक हुश्रा। उससे क्रोधानन, उससे देवकि, उससे त्ररभुक, उससे त्ररक्षक, उससे सत्रयाग करनेवाला मतिवर, जो सरस्वती नदी का स्वामी था, उससे कात्यायन हुश्रा। कात्यायन से नील, नील से दुष्यन्त हुआ। उसका पुत्र भरत हुश्रा जिसने गंगा यमुना के किनारे अविच्छिन्न यूप गाड़ कर यज्ञ किये। भरत से भूमान्यु, उससे सुहोत्र उससे हस्ति हुआ। उससे विरोचन, उससे अजामिल, उससे संवरण, उससे और तपन की बेटी तपनी से सुधन्वा, उससे परीक्षित उससे भीमसेन, उससे प्रदीपन, उससे शान्तनु, उससे विचित्रवीर्य हुआ। उससे पाण्डुराज, उससे धर्मराज, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव, पाँच इन्द्रियों के समान पाँच विषयों[१] के ग्रहण करनेवाले हुये।

गांडीव धनुष धारण करनेवाले अर्जुन ने खाण्डव बन जला दिया, और अन्धक रिपु इन्द्र से पाशुपत अस्त्र पाकर बहुत से दैत्य मारे, और इन्द्र के साथ आधे आसन पर बैठा जिसने कालिकेय आदि को जीतकर कौरवों का वंश नष्ट कर दिया।

अर्जुन का बेटा अभिमन्यु हुआ, अभिमन्यु का परीक्षित, परीक्षित से जन्मेजय, उससे क्षेमक, उससे नरवाहन, उससे शतानीक, उससे उदयन। “उसके पीछे उसकी अविच्छिन्न सन्तान कम साठ पीढ़ी तक अयोध्या के सिंहासन पर विराजी। उसी कुल का विजयादित्य नाम राजा दिग्विजय की इच्छा से दक्षिणापथ को गया, वहाँ उसने त्रिलोचन पल्लव पर चढ़ाई की और मारा गया . . .।"

इसके बाद दानपत्र में लिखा है कि विजयादित्य की रानी के गर्भ था। रानी की एक ब्राह्मण ने रक्षा की, पुत्र उत्पन्न हुआ। बड़े होने


  1. विषय का अर्थ देश का एक भाग भी है।

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