पर पुत्र ने जिसका नाम विष्णुवर्द्धन था। कदंबों और गान्धों को जीत लिया, और नर्मदा से सेतु तक का राजा बन बैठा। इसके बाद विमलादित्य तक पूर्वीय चालुक्य राजाओं के नाम गिनाये गये हैं।
तब सूर्यवंशी राज राजप्रभाव में इन्द्र के समान पृथिवी पर राजा हुआ जिसके पाद पीठ पर सारे राजाओं के मुकुटों के रत्नों की ज्योति पड़ती थी।
उसका बेटा बड़ा प्रतापी राजेन्द्र चोल था। राजेन्द्र चोल की बहिन विमलादित्य को ब्याही थी।
इससे निकलता है कि चोलराजा सूर्यवंशी थे। इस दानपत्र में सोलंकियों को ५९ पीढ़ी तक अयोध्या में राज करना लिखा है।
इसकी पुष्टि बिल्हणकृत विक्रमाङ्कदेवचरित के निम्नलिखित श्लोकों से होती है।
प्रसाध्य तं रावणमध्युवास यां मैथिलीशः कुलराजधानीम्।
ते क्षत्रिया स्तामवदातकीर्ति पुरीमयोध्यां विदधुनिवासम्॥
जिगीषवः कोपि विजित्य विश्वं विलास दीक्षा रसिकाः क्रमेण।
चक्रुः पदं नागरखंडचुम्बि पूगगुमायां दिशि दक्षिणस्याम्॥
"जिस अयोध्यापुरी को सँवार कर श्री रामचन्द्र जी रावण को मारकर रहे थे उसी में (चालुक्य) क्षत्रिय जा कर बस। वहाँ एक पुरुष विश्व को जीत कर दक्षिण देश में आये।"
परन्तु इन लेखों से यह पता नहीं चलता कि अयोध्या में सोलंकी राज कब रहा। इसकी जाँच आगे की खोज से विद्वान कर सकेगे। इसी से हमने यह प्रसंग उपसंहार में रख दिया है।