पृष्ठ:अयोध्या का इतिहास.pdf/२३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१९२
अयोध्या का इतिहास

सब के नेत्रों में वास करें और उन्मेष निमेष रूप से प्रकट होने लगें। फिर मुनियों ने निमि के देह को मथा। उसमें से एक सुकुमार पुरुष उत्पन्न हुआ। इस असाधारण रीति से जन्म होने के कारण उसका नाम जनक विदेह हुआ। उसने मिथिला नगरी बसाई।

हमें यह कथा मिथिला शब्द की उत्पत्ति सिद्ध करने के लिए गढ़ी हुई जान पड़ती है। महाभाष्य में मिथिला शब्द की उत्पत्ति यों दी हुई है:—

मभ्यन्ते रिपवो मिथिला नगरी।

मिथिला जिसमें बैरी मथ डाले जायँ। मिथिला भी इक्ष्वाकु के एक पुत्र की बसाई हुई है। ज्येष्ठ पुत्र की राजधानी अयोध्या थी, उसी की जोड़ का यह नाम रक्खा हुआ प्रतीत होता है।

ह्रस्वरोमन के दो बेटे थे, सीरध्वज और कुशध्वज। सीरध्वज का स्पष्ट अर्थ है जिसकी ध्वजा में सीर अर्थात् हल का चिह्न हो परन्तु श्रीमद्भागवत में लिखा है कि राजा ह्रस्वरोमन यज्ञ करने के निमित्त हल चलाते थे, इसी से पुत्र जन्मा जिसका नाम सीरध्वज रक्खा गया। श्रीमद्भागवत में कुशध्वज सीरध्वज का बेटा है।

२ सीरध्वज—यह बड़े नामी पुरुष थे और इनके गुरु याज्ञवल्क्य थे। इनके यहां शिवजी का धनुष पूजा जाता था। इनके दो बेटियां थीं, एक श्री सीताजी जिनका जन्म यज्ञभूमि में हुआ था, और दूसरी ऊर्मिला| सीरध्वज ने यह प्रतिज्ञा की थी कि जो वीर पुरुष इस धनुष को तोड़ दे उसी के साथ सीता का व्याह हो। धनुष तोड़ कर सीता जी को बरने के लिए बड़े बड़े बीर आये, परन्तु सब अपना सा मुँह ले कर लौट गये। मध्यदेश में सांकास्य एक राज्य था जिसकी जगह अब फ़र्रुखाबाद जिले में संकिस्सा बसन्तपुर नाम एक गाँव बसा हुआ है। उन दिनों इसका राजा सुधन्वा था। सुधन्वा ने राजा सीरध्वज से