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दुसरा अध्याय।
उत्तरकोशल और अयोध्या की स्थिति।

किसी जगह का इतिहास जानने से पहिले उसकी स्थिति जानना परमावश्यक है। इस लिये पुराने कोशलदेश और अयोध्या—पुरानी और नई—दोनों का कुछ वर्णन लिखते हैं।

अयोध्या उत्तरकोशल की राजधानी थी। उत्तरकोशल के नाम ही से एक दूसरे कोशल का ध्यान आता है। पाणिनि के एक सूत्र में कोसल[१] शब्द आया है।

वृद्धकोसलाजादाभ्यङ् । ४ । १ ॥ १७१ ॥

बंबई के सुप्रसिद्ध विद्वान् डाक्टर रामकृष्ण गोपाल भण्डारकर ने अपनी History of the Deccan (दक्षिण के प्राचीन इतिहास) में लिखा है कि विन्ध्य पर्वत के पास के देश का नाम कोशल था। वायु-पुराण में लिखा है कि रामचन्द्र जी के पुत्र कुश कोशल देश में विन्ध्यपर्वत पर कुशस्थली या कुशावती नाम की राजधानी में राज करते थे। यही कालिदास की भी कुशावती प्रतीत होती है क्योंकि कुश को अयोध्या जाते समय विन्ध्यगिरि को पार करना पड़ता था और गङ्गा को भी:—

व्यलंघयद् विन्ध्यमुपायनानि पश्यम्पुलिन्दैरुपपादितानि।
तीर्थे तदीये गजसेतुबन्धात् प्रतीपगामुत्तरतोऽथगङ्गाम्।

—रघुवंश १६ सर्ग

रत्नावली में लिखा है कि कोशल देश के राजा विन्ध्यगिरि से घिरे हुये थे।

विन्ध्यदुर्गावस्थितस्य कोशलनृपतेः [अंक ५]


  1. कोशल और कोसल दोनों रुप शुद्ध हैं।