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पृष्ठ:अयोध्या का इतिहास.pdf/२४४

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अयोध्या का इतिहास


सुह्म से आगे चलकर बंगालियों से रघु की मुठभेर हुई। ये लोग नाव पर चढ़ कर लड़ते थे। रघु ने इन की शक्ति नष्ट करदी। महाकवि जिन शब्दों में वंगनिवासियों की हार का वर्णन करता है। वह आजकल के कुछ बंगाली विद्वानों के इस कथन का खंडन करता है कि बङ्गाल कालिदास की जन्मभूमि थी। इस विषय में हमने भी अपने विचार "कालिदास की जन्मभूमि और ऋतुसंहार" शीर्षक लेख में प्रकट किये थे जो कई वर्ष हुये माधुरी में छपा था। “Date of Kalidasa" उसके कई वर्ष पीछे लिखा गया और हमको उसके पढ़ने से बड़ा आनन्द हुआ क्योंकि उसमें भी हमारे ही कथन की पुष्टि है। बंगालियों को जीत कर गंगा स्रोत (गंगा सागर) के पास एक द्वीप में रघु ने अपना जयस्तम्भ गाड़ा।

यहां से कपिशा (आजकल की सुवर्णरेखा) उतर कर रघु कलिंग देश में पहुँचे। कलिंग देश, चैतरणी के दक्षिण गोदावरी तक फैला हुआ था। पुरातत्ववेत्ता कनिंघम का मत है कि यह देश उड़ीसा के दक्षिण और द्रविड़ के उत्तर में था। इसके दक्षिण-पश्चिम में गोदावरी और पश्चिम-उत्तर में इद्रावती थी। महाभारत के समय में उड़ीसा भी इसी के अन्तर्गत था। मणिपूर[] और राज महेन्द्री इसके मुख्य नगर थे। परन्तु रघु के दिग्विजय के समय में उड़ीसा (उत्कल) इससे भिन्न था और उत्कल के राजा ने रघु के आधीन होकर उनको राह बतायी थी।

इस के आगे रघु महेन्द्रगिरि पर गये जहाँ महाभारत के समय में भी परशुरामजी रहते थे। कलिंग के राजा सदा से वीर रहे हैं। कलिंगवालों ने अशोक के भी दांत खट्टे कर दिये थे यद्यपि अन्त को हार गये। रघु से कलिंगराज लड़ा परन्तु हार गया। उसकी सेना में


  1. मणिपुर आजकल चिलका झील के पास मानिकपसन है और एक बन्दरगाह है।