पृष्ठ:अयोध्या का इतिहास.pdf/२४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२०१
रघु का दिग्विजय

हाथी बहुत थे। कलिंग से रघु दक्षिण गये और कावेरी उतरे। यहां पाण्ड्य देश था। मलयपर्वत और ताम्रपर्णी नदी इस देश की स्थिति निश्चित करते हैं। आजकल के तिन्नवली और रामेश्वरम् इसी के अन्तर्गत थे। इसकी राजधानी “उरगाख्यपुर" लिखी है। उरग का अर्थ नाग है और मदुरा का टामील नाम अलवाय (नाग) है। इससे विद्वान लोग अनुमान करते हैं कि पाण्ड्य देश की राजधानी मदुरा थी।

ताम्रपर्णी जहां समुद्र में गिरती है वहाँ मोती निकलते थे, सो पाण्ड्यराज ने रघु को सम्राट मान कर मोती भेंट में दिये।

उन दिनों पूर्वी घाट के दक्षिणी भाग को दर्दुर कहते थे। उसके और मलयगिरि के बीच में चल कर रघु सह्य पर्वत पर आये। सह्य कावेरी के उत्तर पश्चिमी घाट का नाम है। यहीं मलय (कनाड़ा केरल) देश था। उसने भी रघु का लोहा मान लिया। इसकी मुख्य नदी मुरला थी जिसे अब काली नदी कहते हैं।

वहां से उत्तर चलने पर अपरान्त देश मिला, जिसका एक अंश आज कल कोंकण के नाम से प्रसिद्ध है। मलाबार का एक अंश भी इसी के अन्तर्गत था, वहां के राजा ने भी रघु को कर दिया।

आगे चल कर रघु ने त्रिकूट को अपना जयस्तम्भ बनाया। त्रिकूट लंका का प्रसिद्ध पर्वत है जिसके ऊपर रावण की राजधानी बसी हुई थी। तुलसीकृत रामायण किष्किन्धा कांड में हनूमान जी कहते हैं—

आनौं इहाँ त्रिकूट उपारी।

लंका जीत कर, रघु स्थल मार्ग से [१] पारसीकों को जीतने गये। बीच के राजा क्या हुये? रघुवंश के छठे सर्ग में इस प्रान्त के विदर्भ के अतिरिक्त जहां भोजवंशी राजा राज करते थे और जिस कुल की बेटी


  1. इस से सूचित होता है कि जलमार्ग भी था।

२६