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अयोध्या का इतिहास

इन्दुमती रघु के बेटे को ब्याही थी, अवन्ति[१] अनूप[२] और शूरसेन[३] देश भी थे। इन से छेड़ छाड़ न करने का कारण यही हो सकता है कि इन से मेल था। हम अध्याय ७ में लिख चुके हैं कि उन्हीं दिनों मधु शूरसेन का राजा था और उसके वंशजों ने अनूपदेश भी अपने आधीन कर लिया था और मधु ने अपनी बेटी एक इक्ष्वाकुवंशी राजकुमार को ब्याह दी थी। संभव है कि उन दिनों अनूपदेश जिसके अन्तर्गति भृगुकच्छ (आज का भड़ोच) भी था, हैहय वंशियों के आधीन रहा हो।

पारसीक पारस देश के रहनेवाले थे। अध्याय ७ में हमने लिखा है कि सूर्यवंशी राजा सगर ने पह्नवों को श्मश्रुधारी बना दिया था। पारसी और पह्नवी आजकल भी पर्यायवाची शब्द है। पारसवाले घोड़ों पर चढ़ कर लड़ते थे और उनके दाढ़ी थी। संभव है कि इन्हीं यवनों में अश्वकान (घोदा चढ़नेवाले) भी थे। विद्वानों का मत है कि अफगान शब्द अश्वकान से बिगड़ कर बना है। ईरान (पारस) में अब भी अंगूर बहुत होते हैं और शोराज़ की अंगूरी शराब प्रसिद्ध है। यही शराब रघु के सैनिकों ने पी थी।

यहाँ से रघु कुबेर दिशा अर्थात उत्तर को गये। कुबेर का निवास स्थान कैलास है। इसी से उत्तर दिशा को कौवेरी दिशा कहते हैं। हिन्दोस्तान के नकशे में कश्मीर के उत्तर हूनदेश (Hundes) है। हून लोग पोछे बड़े प्रबल हो गय थे [४] और इन्हीं की राह में कश्मीर देश था जिसके केसर के खेतों में चलने से घोड़ों के शरीर में भी केसर लग गयी। रघु ने हूनों को परास्त किया। और काम्बोजों को दबाया। काम्बोज देश वल्ख और गिलघिट घाटी के बीच


  1. मालवा जिसकी राजधानी उज्जैन थी।
  2. मालवा के पश्चिम समुद्रतट तक फैला था। इसे सागरानूप भी कहते थे।
  3. मथुरा के पास पास का देश।
  4. इन्हीं के अक्रामणों से गुप्तों का राज छिन्नभिन्न हो गया था।