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पृष्ठ:अयोध्या का इतिहास.pdf/२५

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अयोध्या का इतिहास


ह्यानच्वांग भी कलिङ्ग से कोशल देश को गया था। इससे स्पष्ट है कि न केवल एक कोशल देश दक्षिण में भी था। परन्तु उसी कोशल देश का राजा पुलिकेशिन प्रथम की शरण में भी गया था। उस देश का नाम केवल 'कोशल' लिखा है।

उत्तरकोशल की भी वही दशा है। कालिदास ने उसे कई बार उत्तर-कोशल कहा है जैसे रघुवंश के पांचवें सर्ग में।'

पितुरनन्तरमुत्तरकोशलान्।

रघुवंश के दसवें सर्ग में भी :—

श्लाघ्यं दधत्युत्तरकोशलेन्द्राः।

आनन्दरामायण और तुलसीदास को दूसरे कोशल का पता ही नहीं। भागवत पुराण में उसे कोशला और उत्तर कोशला दोनों लिखा है। पंचम स्कन्ध के १९ वें अध्याय के श्लोक ८ में तथा नवम स्कन्ध के दसवें अध्याय के श्लोक ४२ में इस देश को उत्तरकोशला कहा है।

भजेत रामं भनुजाकृतिं हरिं।
य उत्तराननयत् कोशलान्दिवम्॥

धुवंत उत्सरासंगां पतिं वीक्ष्य चिरागतम्।
उतराः कोसला माल्यैः किरंतो ननृतुःमुदा॥

नवम स्कन्ध के दसवें अध्याय के बीसवें श्लोक में राम को कोशलेश्वर कहा है।

इस देश की मिथिला के सदृश अतीत काल से कोई सीमा निश्चित है। साधारणतः यह माना जाता है कि इसका प्रसार घाघरा से गङ्गा तक था। कुछ विद्वानों का मत है कि घाघरा नदी के उत्तर भाग को उत्तरकोशल कहते थे यद्यपि साकेत का फैलाव गङ्गा तक था। राम और उनके पीछे अयोध्या के कुछ गुप्तवंशीय राजाओं ने बड़े बड़े साम्राज्य पर राज किया है। राजा दिलीप के संबंध में भी कहा जाता है कि उसने पृथ्वी पर एक नगरी के समान राज किया था जिसके चारों ओर समुद्र