वसिष्ठ ने उनको फिर पुराने राज्य पर अभिषिक्त किया।[१] इन्हीं वसिष्ठ ने राजा का तपती के साथ ब्याह कराया जिससे कुरु का जन्म हुआ और इन्हीं वसिष्ठ ने राजा के राज में पानी बरसाया।[२]
वंशावलियों के मिलाने से यह संवरण उत्तर पांचाल के सुदास और अयोध्या के कुशपुत्र अतिथि का समकालीन निकलता है। परन्तु ऋग्वेद ७, १८ का ऋषि वसिष्ठ का पोता पराशर है; जिससे प्रकट है कि वसिष्ठ उस समय बहुत बुड्ढे हो गये थे। एक वसिष्ठ पिजवन-पुत्र सुदास के भी पुरोहित थे। सुदास ने एक यज्ञ किया। इसमें वसिष्ठ पुत्र शक्तृ ने विश्वामित्र को परास्त कर दिया परन्तु जामदग्न्यों ने कौशिकों की सहायता की। कहीं कहीं यह भी लिखा है कि विश्वामित्र के कहने से राजा के सेवकों ने शक्तृ को दावानल में डाल दिया। कुछ भी हो इस में सन्देह नहीं कि शक्तृ मारा गया और उसके मरने पर उसकी स्त्री अदृश्यन्ती के पराशर पुत्र उत्पन्न हुआ। इससे प्रकट है कि एक वसिष्ठ उत्तर पाञ्चाल के राजा सुदास के भी पुरोहित थे। अर्वुदमाहात्म्य में लिखा है कि एक वसिष्ठ उस पर्वत पर रहते थे जिसे आज कल आबू पहाड़ कहते हैं। यह स्थान गोमुख के नाम से प्रसिद्ध है। इसमें गोमुखरूपी टोंटी से नीचे के कुंड में पानी गिरता है। इसी के पास वसिष्ठ का मन्दिर है। इस मन्दिर में सिंहासन पर वसिष्ठ की मूर्ति के दाहिने बायें राम लक्ष्मण की मूर्तियां, वसिष्ठ पत्नी अरुन्धती और बछरे समेत नन्दिनी गाय की मूर्तियाँ हैं। यहीं अग्निकुण्ड है जिसमें से वसिष्ठ के यज्ञ करने पर अग्निकुल क्षत्रिय उत्पन्न हुये थे। जब परशुराम ने पृथ्वी निःक्षत्रिया कर दी तो ब्राह्मण भी