उड़ा दिया। अञ्जना ने कहा कि हमारा पतिव्रत-धर्म कौन नष्ट करना चाहता है? इस पर पवन ने उत्तर दिया कि तुम्हारा पतिव्रत-धर्म भङ्ग न होगा। हमारे संसर्ग से तुम महासत्व, महातेजस्वी और महापराक्रमी पुत्र जनोगी। वही पुत्र तुम हो। जब तुम बालक ही थे, तुमने वन में सूर्य्य को उदय होते ही देख कर यह समझा कि फल है, और उसके खाने को दौड़े थे। इस पर इन्द्र ने तुम्हारे ऊपर वज्र प्रहार किया और तुम्हारी बाई हनु (डाढ़) टूट गई। तब से तुम्हारा नाम हनूमान पड़ा। [१]
ब्रह्मपुराण में यह कथा विशेष विस्तार के साथ दी हुई है।
गोदावरी और फेना (पेनगङ्गा) के संगम पर एक बड़ा तीर्थ है[२] जिसमें स्नान दान करने से पुनर्जन्म नहीं होता। इस तीर्थ के अनेक नाम हैं, वृषाकपि, हनूमत, मार्जार और अब्जक। यह तीर्थ गोदावरी के दक्षिण तट पर है और इसकी कथा यह है।
"केशरी के दो स्त्रियाँ थीं, अञ्जना और अद्रिका। दोनों पहिले अप्सरायें थीं। शाप के बस अञ्जना का मुँह वानर का सा हो गया था और अद्रिका का बिल्ली का सा। दोनों अञ्जन पर्वत पर रहती थीं। एक बार अगस्त्य मुनि वहाँ पहुँचे। दोनों ने उनकी पूजा की और मुनि ने प्रसन्न हो कर दोनों को एक एक पुत्र का वर दिया। दोनों उसी पर्वत पर नाचती गाती रहीं। वहीं वायुदेव और निर्ऋतिदेव पहुँच गये। वायु के संसर्ग से अञ्जना के हनूमान पुत्र हुये और निति के संयोग से अद्रिका के अद्रि नाम पिशाचराज पुत्र हुआ। पीछे गोदावरी में स्नान करने से दोनों की शाप-निवृत्ति हुई। जहाँ अद्रि ने अञ्जना को नहलाया। उस तीर्थ का नाम प्रांजन और पैशाच पड़ा और जहाँ हनूमानजी