ने अद्रिका को स्नान कराया था वह मार्जार, हनूमत और बृषाकपि के नामों से प्रसिद्ध हुआ।[१]
वृषाकपि का अर्थ है जिसका संबन्ध वृषकपि से हो और वृषाकपि की कथा अध्याय १२९ में ही हुई है।
"दैत्यों का पूर्वज बड़ा बलवान हिरण्य, तपस्या के वल से देवताओं का अजेय हो गया था। उसका बेटा महाशनि भी बड़ा बली था। उसने एक युद्ध में इन्द्र को हाथी में बाँध कर अपने पिता को भेंट कर दिया। पिता ने इन्द्र को बन्द रक्खा। पीछे महाशनि ने वरुण पर चढ़ाई कर दी परन्तु वरुण देव ने उसे अपनी बेटी देकर संधि कर ली। इन्द्र के बँध
जाने से देवता बहुत दुखी हुये और विष्णु से सहायता माँगी। विष्णु ने उत्तर दिया कि वरुणदेव की सहायता के बिना हम कुछ नहीं कर सकते। तब देवता वरुण के पास गये। वरुण के कहने से महाशनि ने इन्द्र को छोड़ तो दिया परन्तु उनको बहुत फटकारा और उनसे कहा कि तुम वरुण को आज से गुरु मानो। इन्द्र मुंह लटकाये अपने घर आये और इन्द्राणी से अपनी दुर्दशा कही। इन्द्राणी ने कहा कि हिरण्य हमारा चचा था तो भी हम अपने चचेरे भाई की मृत्यु का उपाय बताती हैं। तपस्या और यज्ञ से सब कुछ हो सकता है। तुम दंडकवन से शिव और विष्णु की आराधना करो, इन्द्र ने शिव की पूजा की। शिव ने कहा कि हम अकेले कुछ नहीं कर सकते। तुम विष्णु की पूजा करो। तब इन्द्र इन्द्राणी ने आपस्तम्ब के साथ गोदावरी के दक्षिण तट पर गोदावरी और फेना के संगम पर विष्णु भगवान की आराधना की। शिव और विष्णु के प्रसाद से जल में से शिव विष्णु दोनों का स्वरूप धारण किये हुये अर्थात् चक्रपाणि और शूलधर दोनों, एक पुरुष उत्पन्न हुआ। उसने
- ↑ ब्राह्म पुराण अध्याय ८४।